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धन्य तेरस:पधारो माँ लक्ष्मी

सीमा जैन ‘निसर्ग’
खड़गपुर (प.बंगाल)
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धन तेरस को धन्य करने, लक्ष्मीजी जब घर आएंगी,
तेजस्विता की शुभ्र किरणें, उनसे पहले आ जाएंगी।

लकदक जगमग गजगामिनी-सी, ऐश्वर्य की देवी आएंगी,
द्वार मेरा झिलमिलाएगा, जब माँ लक्ष्मी घर आएंगी।

माथे बिंदिया, रत्नों की नथिया, स्वर्ण से कर्णफूल टंके होंगे,
बाजूबंद और कंगन चूड़ियों से, माँ के हाथ भरे होंगे।

माथे बिंदी, आँखों में काजल, लाली से अधर सजे होंगे,
बेला के अगणित फूलों से, बालों में गजरे गूंथे होंगे।

लाल किनारी, सुनहरी साड़ी, रत्नों का ओढ़ना लहरेगा,
बाजूबंद बंधेगा बाँहों में, सतलड़ा हार नाभि तक झूलेगा।

स्वर्ण और रत्नों के जेवर, अंग-अंग मां का निखारेंगे,
गहनों की दप-दप आभा से, मुखड़े को अद्वितीय बनाएंगे।

पायल रुनझुन कर बाजेगी, बिछियों से पाँव भी दमकेंगे,
माहुर के सुंदर लाल रंग से, लक्ष्मी जी के चरण शोभेंगे।

कमल विराजिनी के दूज हाथों से, स्वर्णों के फूल झरेंगे,
मेहंदी से रचे सुंदर हाथों से, माँ के आशीष मिलेंगे।

मेरी माता, मेरी लक्ष्मी, तुम आन पधारो मेरे द्वारे,
मैं कबसे आस लगा बैठी, माँ आन विराजो घर म्हारे॥