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बिदाई

सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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मन हो रहा है अधीर
बेटी कैसे धरूँ मैं धीर,
बाबा ने ढूँढा है घर-वर बिटिया
माता के नयनों की नूर
जो बेटी मेरी प्राण से प्यारी,
कैसे रहूँगी उससे दूर
शुभ घड़ी आयी, बाजी शहनाई,
द्वारचार की रीति
परछन कर माता दूल्हे को देखें
नयनों में बढ़ी प्रीति।

मंडप अंदर बैठे हैं दूल्हे राजा,
बन बेटी के मीत
कन्यादान दिए पित-माता
फिर भाँवर की रीत
एक-एक भाँवर रिश्ता नूतन जोड़े,
माता हुई है अधीर
हो गई मेरी बेटी अब तो पराई,
कैसे सहूँगी मैं पीर।

सदा सुहागन नव जीवन धन,
सुखी रहे परिवार
बेटी सदा खुला मेरा द्वार,
जिस घर से बेटी नाता जुड़ा है रखना तुम उसकी लाज,
ऐसा तुम्हारा हो काज
दे आशीष बिदा कर आई।
गाने लगे मंगल-गीत,
यह भी घर की है रीत॥