डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)
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संस्कार और संस्कृति मानव जाति को सर्वश्रेष्ठ प्राणी बनाती है। संस्कार सदैव परिवार में प्राप्त होता है। माता-पिता और परिवार के बुजुर्ग लोग बाल अबोध बाल हृदय को मिले संस्कार षोडश नये ज्ञान आचार विचारों से निमज्जित करते हैं। वे सन्तानों को नैतिक शिक्षा, सद्ज्ञान, रीति-रिवाज, परम्पराओं से परिचित कराते हैं। देश भक्ति, प्रेम और समस्त मानव जाति के समुत्थान में नागरिक लोक कल्याणार्थ नव शोधक पथ पर ले जाने का काम करते हैं। हमारे सनातनी मानवीय स्वभाव, परम्पराओं, नीति, न्याय, कर्त्तव्य बोध और परहित सेवा भाव के प्रतिशिक्षण संस्कार देते हैं, जिससे बच्चे और बेटियाँ देश के योग्य नागरिक बनते हैं तथा राष्ट्र सेवा और समुन्नति में अपना योगदान देते हैं। संस्कार हमारी जीवन धरोहर है। भारत विजय रथ पर चढ़कर चतुर्सीमाओं पर शत्रुंजय बन भारतीय आन बान शान तिरंगा ध्वजा लहराते हैं। राष्ट्र के प्रति ख़ुद का समर्पण और राष्ट्र रक्षार्थ बलिदान देने को तत्पर रहने का संस्कार देते हैं। राष्ट्र जन-मन प्रगति और विकास ही मानवीय मदद और पुरुषार्थ सत्काम सुयश होता है। संस्कारों से सिंचित बालपन परिवार समाज, प्रदेश देश और विश्व विश्व शान्ति, प्रेम, सहयोग, अपनापन, परस्पर समादर और भारत के विश्व गुरुत्व के रूप में योग्य राष्ट्रभक्त नागरिकों के कर्त्तव्य बोध को जागृत करते हैं। संस्कारी दीपक की दिव्य रोशनी से आलोकित बचपन करुणा, प्रेम, दया, क्षमा, त्याग, गुण और न्याय गुणों से भर जाते हैं। मधुरिम सुखमय नित जीवन होता है, यदि संस्कार बचपन से हो।
सरल सहज मृदुभाष मनोहर व्यवहार स्नेह से ललिस ज्ञानमय हो। संस्कारी बचपन अन्तर्मन उल्लास सूर्य किरण, मृदुभाष सदय शीतल पावन और मधुरिम जनजीवन दुर्भाग्य रहित होता है। संस्कार सत्कार्य पथ जन जीवन, सौहार्द्र हृदय ज्ञान विमल हो जाता है। संस्कारों से जीवन्त ज्ञान परमारथ सेवारत मन अनुशासित अनमोल धरोहर रूप में शाश्वत पावन बन जाता है। संस्कार सुयश प्रतिमानक, मानवता और नैतिकता मूलक फल होता है। संस्कारों से परिपूर्ण मनुष्य का मुदार प्रकृति और करुणार्द्र चमन, सहज सरल भौतिक जीवन सुखमय हो जाता है।संस्कार जीवन का वरदान बन सुखद संगीत अमन, ज्ञान प्रीति संस्कार सृजित करते हैं। अतः संस्कार मानवीय धरोहर सागर है, जिसमें अवगाहन कर मानव मानव कहलाता है।
परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥
