पद्मा अग्रवाल
बैंगलोर (कर्नाटक)
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“निर्भय, आज हम लोगों की शादी के पूरे ३० साल बीत गए। सब लोगों की नजरों में हम आइडियल कपल हैं, लेकिन मैं देख रही हूँ कि हम दोनों के रिश्तों पर समय की धूल जमती जा रही है। मैं बार-बार कहती रही। आज तक तुमने मुझे कभी ढंग का गिफ्ट नहीं दिया…। तुमने मुझसे डिनर के लिए होटल ले जाने का वादा किया। मैं तैयार होकर इंतजार करती रही थी, तुम देर से थके हुए आये और फिर डायनिंग टेबिल पर बैठ कर खाना माँगने लगे थे।
मैंने गुस्से में सुबह के ठंडे पराठे और दही रख दिया था। तुम ऐसे स्वाद से खा रहे थे, जैसे खीर मोहन खा रहे हो। मैं गुस्से से उबल रही थी। तुम प्यार से बोले, ”निया, मैं कितना लकी हूँ जो तुम जैसी प्यारी पत्नी मिली है।”
तुम बरसों बाद पहली बार मेरे लिए साड़ी लाए थे, वह भी पुराने फैशन की। देखते ही मेरा मूड खराब हो गया था, लेकिन तुम साड़ी मेरे ऊपर डाल कर प्यार से बोले थे, “निया देखो साड़ी की खूबसूरती कितनी बढ़ गई।“
मैंने तुम्हें परेशान करने के लिए कई बार कमरे में जान-बूझकर बुक्स और कपड़े-बर्तन बिखेर कर रख दिए थे, कि तुम आज जरूर शिकायत करोगे, लेकिन निर्भय तुमने आते ही पहले सब चीजों को करीने से उसकी जगह पर रखा; फिर खाने के लिए बैठे।
मैंने कितनी बार शर्ट के बटन तोड़ कर रख दिए, लेकिन मेरे प्रियतम, तुमने चुपचाप अपने से बटन लगा कर शर्ट पहन ली थी।
मैंने कितनी बार बिना नमक की दाल, सब्जी तुम्हें दे दी लेकिन तुमने चुपचाप खा ली। बाद में प्यार से मेरे गालों को छूकर कहा, ”आज शायद नमक डालना भूल गई हो, अपनी दाल में नमक डाल लेना।“
मैं शर्म से पानी-पानी हो गई थी।
निर्भय मैं तुमसे इतनी शिकायत करती रहती हूँ, क्या तुम्हें मुझसे कोई भी शिकायत नहीं है…!”
”निया, तुमने मेरे और मेरे परिवार के लिए जो त्याग किया है। तुम्हारा मेरे प्रति जो प्यार और समर्पण है, वह तुम्हारी सारी कमियों से कहीं ऊपर है। मेरी अनगिनत अक्षम्य भूलों के बाद भी तुमने जीवन के हर पलों में मेरी छाया बन कर साथ निभाया है, अपनी छाया में भला किसी को दोष कैसे दिख सकता है।”
“आज मुझे कह लेने दो, निर्भय तुम मेरे लिए ऑक्सीजन हो… मेरी प्राण वायु हो।”
