कुमारी ऋतंभरा
मुजफ्फरपुर (बिहार)
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अपनी अलग पहचान बना रही है गाँव की बेटियाँ,
विषैली हवाओं से अनजान गाँव की बेटियाँ
हर कदम फूंक-फूंक कर रखती है गाँव की बेटियाँ।
बना रही है अलग पहचान गाँव की बेटियाँ,
खुद पर है विश्वास माँ-बाप का है स्वाभिमान
ओढ़नी और घुंघरू से हो रही है आजाद गाँव की बेटियाँ।
भोली-भाली दुनिया से अनजान अब नहीं रही गाँव की बेटियाँ।
मेहंदी वाले हाथों में उठाने लगी बंदूक,
बन गई देश की पहरेदार गाँव की बेटियाँ॥