प्रति,
संयुक्त सचिव
राजभाषा विभाग
गृह मंत्रालय, भारत सरकार
नई दिल्ली–११०००१
विषय:-भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा राजभाषा अधिनियम १९६३ एवं राजभाषा नियम-१९७६ का उल्लंघन।
माननीय महोदय/महोदया,
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा राजभाषा अधिनियम १९६३ एवं राजभाषा नियम १९७६ का व्यापक और निरंतर उल्लंघन कियाजा रहा है। ई-पर्यटन पोर्टल, पुरातात्विक सूचना, संग्रहालय
अभिलेख और जनसुविधा प्रणाली को केवल अंग्रेज़ी में रखना
राजभाषा अधिनियम की धारा ३(३) और राजभाषा नियम ११ का
सीधा, जानबूझकर किया गया औरअस्वीकार्य उल्लंघन है।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण एक
राष्ट्रीय संस्थान है, जो भारत की
सांस्कृतिक विरासत का संरक्षक है।ऐसे में राजभाषा हिन्दी के प्रति इसका उदासीन व्यवहार न केवल
कानूनी उल्लंघन है, बल्कि राष्ट्रीय गौरव और भाषाई अन्याय भी है।
◾प्रमुख कानूनी उल्लंघन एवं उनका स्वरूप-
१.डिजिटल एवं सूचना सेवाओं पर केंद्रित भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा किए जा रहे उल्लंघन-
है।
२. विशेष चिंताएँ:सांस्कृतिक और राष्ट्रीय महत्व-
🔹भारत की सांस्कृतिक विरासत और हिन्दी भाषा का अविच्छेद्य
संबंध-
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण भारत की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक
विरासत का प्रधान संरक्षक संस्थानहै। ताजमहल, खजुराहो, अजंता- एलोरा, कोणार्क सूर्य मंदिर, सांची स्तूप जैसे महत्वपूर्ण स्थल एएसआईके अधीन हैं। इन स्थलों की जानकारी का भारतीय भाषाओं में, विशेषकर हिन्दी में उपलब्ध न होनाअपने-आपमें एक सांस्कृतिक
संकट है।
प्रमुख चिंताएँ:
•जनता से विमुखता:भारत के करोड़ों हिन्दी-भाषी नागरिक अपनी ही ऐतिहासिक विरासत से अंग्रेज़ी के माध्यम से जुड़ने को बाध्य हैं।
•शिक्षा पर प्रभाव:छात्रों को ऐतिहासिक शोध के लिए हिन्दी संसाधन न मिलना एक बड़ी कमी है।
•पर्यटन में असमानता:विदेशी और अंग्रेज़ी-भाषी पर्यटकों को विस्तृत जानकारी मिलती है, जबकि भारतीय पर्यटकों को सीमित जानकारी।
•वैज्ञानिक दस्तावेज़:पुरातात्विक शोध, संरक्षण प्रतिवेदन और वैज्ञानिक अध्ययन केवल अंग्रेज़ी में हैं, जिससे हिन्दी माध्यम के शोधकर्ताओं को हानि पहुँचती है।
•राजभाषा नीति का उपहास:एक सरकारी संस्थान के रूप में एएसआई का यह रवैया राजभाषा नीति का खुला उपहास है।
३.त्वरित एवं विधिसम्मत कार्रवाई हेतु विस्तृत अनुरोध-
उपरोक्त गंभीर उल्लंघनों को समाप्त करने तथा डिजिटल एवं सूचना सेवाओं में राजभाषा हिन्दी के प्रयोग को तत्काल सुनिश्चित करने के लिए आपसे निम्न त्वरित एवं प्रभावी कार्रवाई सुनिश्चित करने का आग्रह किया जाता है:
▪️तत्काल पूर्ण द्विभाषीकरण (नियम ११):एएसआई की वेबसाइट (asi.nic.in) को ३ महीने के भीतर पूर्णतः द्विभाषिक (हिन्दी और अंग्रेज़ी) बनाया जाए, जिसमें-सभी वेब पृष्ठ, लिंक और नेविगेशन हिन्दी और अंग्रेज़ी दोनों में उपलब्ध हों, होमपेज पर हिन्दी को प्रमुख स्थान दिया जाए व सभी ऐतिहासिक स्थलों की जानकारी द्विभाषिक हो।
▪️ई पर्यटन पोर्टल का द्विभाषीकरण:ऑनलाइन टिकट बुकिंग, अनुमति आवेदन, और पर्यटन संबंधी सभी सेवाएँ तत्काल हिन्दी में उपलब्ध कराई जाएँ।
▪️संग्रहालय सामग्री का हिन्दी अनुवाद:सभी महत्वपूर्ण पुरातात्विक सूचना, संग्रहालय लेबल और निर्देश ३ महीने के भीतर हिन्दी में अनुदित किए जाएँ।
▪️शोध और वैज्ञानिक दस्तावेज़: एएसआई द्वारा प्रकाशित सभी शोध प्रतिवेदन, संरक्षण अध्ययन और वैज्ञानिक पत्रों का हिन्दी सारांश/अनुवाद उपलब्ध कराया जाए।
▪️राजभाषा समिति का गठन: एएसआई के निदेशक की अध्यक्षता में एक स्थायी राजभाषा कार्यान्वयन समिति गठित की जाए, जो तिमाही प्रगति प्रतिवेदन तैयार करे।
▪️कर्मचारी प्रशिक्षण (नियम १३): सभी कर्मचारियों को हिन्दी में कार्य करने के लिए आवश्यक प्रशिक्षण दिया जाए, विशेषकर जनसंपर्क और पर्यटन विभाग के कर्मचारियों को।
▪️पारदर्शिता और जवाबदेही (नियम १२):एएसआई की वेबसाइट पर एक समर्पित ‘राजभाषा कोना’ बनाया जाए, मासिक प्रगति प्रगति सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराया जाए तथा राजभाषा नीति और कार्यान्वयन रणनीति वेबसाइट पर प्रकाशित की जाए।
▪️क्षेत्रीय कार्यालयों का समन्वय: एएसआई के सभी क्षेत्रीय कार्यालय व शाखाएँ अपने स्तर पर द्विभाषिक सेवाएँ सुनिश्चित करें।
▪️जवाबदेही व्यवस्था:जो अधिकारी राजभाषा नियमों का उल्लंघन करते हैं, उनके विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए।
आपसे निवेदन है कि इस शिकायत को अत्यंत गंभीरता से लेते हुए निम्नलिखित कार्य करें:
🔺तत्काल निरीक्षण:एएसआई के निदेशक स्तर पर तुरंत निरीक्षण कराया जाए और वर्तमान स्थिति की रिपोर्ट माँगी जाए।
🔺समय-सीमा निर्धारण: द्विभाषी करण के लिए स्पष्ट समय-सीमा (अधिकतम ६ महीने) निर्धारित की जाए।
🔺जवाबदेही:एएसआई के मुख्य प्रशासन को निर्देशित किया जाए कि वे राजभाषा अनुपालन को अपना अनिवार्य लक्ष्य बनाएँ।
🔺अन्य सांस्कृतिक संस्थानों का पर्यवेक्षण:यह शिकायत एक उदाहरण बनकर अन्य सभी सांस्कृतिक और शैक्षणिक संस्थानों को भी सचेत करे।
🔺जनता को सूचित करें:एएसआई और राजभाषा विभाग के बीच के पत्राचार को सार्वजनिक किया जाए, ताकि नागरिक समाज भी निरीक्षण कर सके।
कृपया इस शिकायत पर की गई त्वरित प्रगति रिपोर्ट मुझे भी भेजी जाए।
भवदीय
विपुल कुमार जैन
(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुम्बई)