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जुगाड़ अपनी-अपनी

दीप्ति खरे
मंडला (मध्यप्रदेश)
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लगे लगाने में सभी,
जुगाड़ अपनी-अपनी
जैसी जिसकी जरूरतें,
वैसा प्रयास सबका।

कोई जुगाड़ में लगा,
दो जून की रोटी की
किसी की जुगाड़,
छप्पन भोग जीमने की।

कुछ जुगाड़ हो जाता तो,
बच्चे को भेज देता स्कूल
कोई लगाता जुगाड़,
डोनेशन से एडमिशन का।

कोई लगा जुगाड़ में,
मिल जाए बस कुर्सी
कोई इस जुगाड़ में,
हो मनोकामना पूर्ति।

कोई लगा जुगाड़ में,
एक अदद नौकरी की
कोई लगाए है जुगाड़,
ऊँची पदवी पाने की।

जुगाड़ लगाने के लिए,
जतन करते सब अपना।
जैसी जिसकी जरूरतें,
वैसा प्रयास सबका॥