धर्मेंद्र शर्मा उपाध्याय
सिरमौर (हिमाचल प्रदेश)
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नशा–नाश है तन मन धन का,
करता सबका जीवन बर्बाद
तन को करता है कमजोर,
मन से न लगने देता ध्यान।
दु:खी हृदय है नशा बनाता,
छीन लेता है सुखी समाज
एक बार जो लगी लत तो,
नहीं होने देगा आजाद।
खोखला कर देगा तन–मन को,
धन भी कर देता बर्बाद
अपमानित कर देता उसको,
जिसने नशे से किया है प्यार।
शराब, अफीम, बीड़ी, सिगरेट,
गुटका, खैनी, चरस व भांग,
दवा नशीली बेदर्दी चिटटा,
यह सब है इसका परिवार ।
कुसंग इसकी सेना अभिराम,
अधीन करती जन–मन संसार
पहले दिखता सुखी संसार,
फिर देता दु:ख कष्ट अभिमान।
धीरे-धीरे कर देता दूर,
अपना सुखी परिवार समाज
देख अपनों का नशीला समाज,
नादान भी करने लगते प्रयास।
नरक बनता जीवन उनका,
अंधा नशा कर जीवन बर्बाद
नशा खोखला कर रहा आज,
योग्यता का हो उपहास।
नशा मुक्ति है जो परिवार,
उसका जीवन आधार खुशहाल।
रोग–चिंतामुक्त वे जन,
अपनाएं नशामुक्ति का ज्ञान॥