बबिता कुमावत
सीकर (राजस्थान)
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नारी आज रिश्तों में तो बंधती है,
पर स्वतंत्र उड़ान का स्वप्न भूलती नहीं।
वह त्याग तो करती है,
पर स्वयं को मिटाती नहीं।
वह प्रेम तो करती है,
पर अपने अस्तित्व की कीमत पर नहीं।
वह हर कदम पर प्रश्न तो करती है,
पर मौन शिक्षा स्वीकार करती नहीं।
वह लिखती और बोलती तो है,
पर पुरानी सोच को स्वीकारती नहीं।
वह दोहरे मानदंडों से लड़ती तो है,
पर आत्म सम्मान को ठेस पहुंचाती नहीं।
वह वर्तमान की तो नारी है,
पर संतुलित कदम उठाना भूलती नहीं।
वह परम्परा-आधुनिकता का समन्वय तो है,
पर नई दिशा में चलना भूलती नहीं।
वह संघर्षरत आज भी तो है,
पर कमजोर अपने को बनाती नहीं।
वह जागरूक और सशक्त तो है,
पर भविष्य की निर्णायक शक्ति को भूलती नहीं।
वह सपनों का मानचित्र रखती तो है,
पर यथार्थ की रोशनी मिटाने देती नहीं।
वह रसोई की भाप से निकलती तो है,
पर कार्यालय की फाइलों तक जाना भूलती नहीं।
वह सवाल बनकर खड़ी तो होती है,
पर सम्मान की भीख मांगती नहीं।
वह अपने-आपको स्थापित तो करती है,
पर ठोकरों से दिशा निकालना भूलती नहीं॥