ललित गर्ग
दिल्ली
*******************************************************
जन्म जयन्ती (११ सितम्बर)विशेष….
दिव्य कर्तव्य,मानवतावादी सोच,सबके उदय की कामना,चिन्मयी पुरुषार्थ और तेजोमय शौर्य से मानव-मानव की चेतना को झंकृत करने एवं धरती को जय जगत का सन्देश देने वाले युगपुरूष संत विनोबा भावे का जन्म ११ सितम्बर १८९५ को हुआ था। इस महापुरूष ने भूदान,डाकूओं के आत्मसमर्पण तथा जय जगत के विचारों द्वारा वैश्विक समास्याओं के अहिंसक तरीके से समाधान निकालने के जीवन्त उदाहरण प्रस्तुत किए थे। वे हमारे लिए एक प्रकाश स्तंभ,राष्ट्रीयता,नैतिकता,अहिंसक जीवन,पीड़ितों एवं अभावों में जी रहे लोगों के लिए आशा एवं उम्मीद की मीनार थेl वे संतों की उत्कृष्ट पराकाष्ठा थे,भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी,सामाजिक कार्यकर्ता,विशिष्ट उपदेष्टा,महान विचारक तथा प्रसिद्ध गांधीवादी नेता थे। उनका मूल नाम विनायक नरहरी भावे था। वे भारत में भूदान तथा सर्वोदय आन्दोलन प्रणेता के रूप में सुपरिचित थे। वे भगवद्गीता से प्रेरित जनसरोकार वाले जननेता थेl वे कर्मप्रधान व्यक्ति थे,इसलिए गीता उनका आदर्श थी। उन्होंने अपने प्रवचनों में गीता का सार बेहद सरल शब्दों में जन-जन तक पहुँचाया,ताकि उनका आध्यात्मिक उदय हो सके,अंधेरों में उजाले एवं सत्य की स्थापना हो सके।
विनोबा भावे ने सर्वोदय समाज की स्थापना की। यह रचनात्मक कार्यकर्ताओं का अखिल भारतीय संघ था। इसका उद्देश्य अहिंसात्मक तरीके से देश में सामाजिक परिवर्तन लाना था। इस कार्यक्रम में वे पदयात्री की तरह गाँव-गाँव घूमे और लोगों से भूमिखण्ड दान करने की याचना की,ताकि उसे कुछ भूमिहीनों को देकर उनका जीवन सुधारा जा सके। उनका यह आह्वान जितना प्रभावी रहा,वह विस्मित करता है। इस पवित्र कार्य में जमींदार लोग भी गरीबों को दिल खोलकर जमीन देने के लिए आगे आए। यह संसार की अपनी तरह की अनूठी अहिंसक क्रान्ति है। वे गांधीवादी विचारों पर चले। रचनात्मक कार्यों और न्यासीगण जैसे विचारों का प्रयोग किया। १९५५ तक भू-आंदोलन ने एक नया रूप धारण किया। इसे ‘ग्रामदान’ के रूप में पहचाना गया। इसका अर्थ ‘सारी भूमि गोपाल की’ था। उनकी जन नेतृत्व क्षमता का अंदाज इसी घटना से लगता है कि इन्होंने चम्बल के डाकुओं को आत्मसमर्पण के लिए प्रेरित कियाl आज देश पर हावी हो चुके नक्सलवाद पर विनोबा भावे-जेपी वाली अहिंसा रूपी लगाम लगायी जा सकती है। आतंकवाद तथा नक्सलवाद की जड़ पर चोट की जाए,केवल पत्तों पर दवा छिड़कने से स्थायी समाधान नहीं मिलेगा।
विनोबा भावे को भारत का राष्ट्रीय आध्यापक और महात्मा गांधी का आध्यात्मिक उत्तराधिकारी समझा जाता है,मगर यह उनके चरित्र का एकांगी और एकतरफा विश्लेषण है। वे गांधीजी के ‘आध्यात्मिक उत्तराधिकारी’ से बहुत आगे,स्वतंत्र सोच एवं मानवतावादी कार्यक्रमों के स्वामी थे। मुख्य बात यह है कि गांधीजी के प्रखर प्रभामंडल के आगे उनके व्यक्तित्व का स्वतंत्र मूल्यांकन हो ही नहीं पाया। उनको हम ज्ञान का अक्षय कोष कह सकते हैं। गांधी के सान्निध्य में आने से पहले ही विनोबा आध्यात्मिक ऊंचाई प्राप्त कर चुके थे। संत ज्ञानेश्वर एवं संत तुकाराम उनके आदर्श थे।
विनोबा भावे ने गाँधीजी के साथ देश के स्वाधीनता संग्राम में बहुत काम किया। उनकी आध्यात्मिक चेतना समाज और व्यक्ति से जुड़ी थी। इसी कारण सन्त स्वभाव के बावजूद उनमें राजनीतिक सक्रियता भी थी। उन्होंने सामाजिक अन्याय तथा धार्मिक विषमता का मुकाबला करने के लिए देश की जनता को स्वयंसेवी होने का आह्वान किया।
भारत के स्वतन्त्र होने के बाद विनोबा भावे ने समाज सुधार के आंदोलन की शुरुआत की। इस क्रम में भूदान तथा सर्वोदय आन्दोलन बहुत प्रभावी रहे। उनका मानना था कि भारतीय समाज के पूर्ण परिवर्तन के लिए अहिंसक एवं नैतिक क्रांति की आवश्यकता है। विनोबा भावे करुणाशील थे,उनकी करुणा एवं संवेदना से पूरी मानवता आप्लावित थी। नेतृत्व वही सफल होता है जो सबको साथ लेकर,सबका अपना होकर चले। उनका नेतृत्व कद ऊंचा इसलिये उठ गया,क्योंकि उन्होंने अपना वात्सल्य,प्रेम,विश्वास और सौहार्द सबमें बांटा। उपलब्धियों में सबको सहभागी माना।
२५ दिसम्बर १९७४ से उन्होंने १ वर्ष का मौन व्रत रखा। महात्मा गाँधी के गहन अनुयायी होने के कारण वह कांग्रेस दल के निर्विवाद समर्थक थे। जब तत्कालीन प्रधानमन्त्री इन्दिरा गांधी ने लोकतन्त्र तथा संविधान को परे करते हुए आपातकाल
लगाया,तब भी विनोबा जी ने इन्दिरा गाँधी तथा कांग्रेस का समर्थन किया। इस बात को लेकर वह विवाद से घिर गए थे और उनकी आध्यात्मिकता तथा जन-सरोकार को संशय से देखा जाने लगा था।
विनोबा भावे नवम्बर १९८२ में गंभीर रूप से बीमार पड़ गए और उन्होंने जैन धर्म के संलेखना-संथारा के रूप में भोजन और दवा का त्याग कर इच्छापूर्वक मृत्यु का वरण करने का निर्णय किया। उनका १५ नवम्बर १९८२ को निधन हो गया। सचमुच! वह कर्मवीर कर्म करते-करते कृतकाम हो गया,पर हमारे सामने प्रश्न है कि हम कैसे मापें उस आकाश को,कैसे बांधे उस समंदर को,कैसे गिनें बरसात की बूंदों को ? विनोबा जी की रचनात्मक, सृजनात्मक एवं समाज-निर्माण की उपलब्धियां इतनी ज्यादा है कि उनके आकलन में गणित का हर सूत्र छोटा पड़ जाता है। विनोबा भावे को सामुदायिक नेतृत्व के लिए पहला अंतरराष्ट्रीय रेमन मैगसाय पुरस्कार मिला था। उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न
से सम्मानित किया गया।
विनोबा भावे की जयंती को मानव जाति के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज कराने के लिए ‘जय जगत’ के अनुरूप सारी वसुधा को कुटुम्ब बनाने का हमें संकल्प लेना चाहिए। गुफाओं से शुरू हुई मानव सभ्यता की अंतिम ‘जय जगत’ अर्थात वैश्विक लोकतांत्रिक व्यवस्था (विश्व संसद) के गठन एवं वसुधैव कुटुम्बकम-समूची दुनिया एक परिवार की मंजिल की दिशा में सफल कदम बढ़ाना विनोबाजी के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।