हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस स्पर्धा विशेष….
अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा हो हिन्दुस्तान की भाषा,
पुरानी विश्व में सबसे भली सबसे हिन्दी भाषा।
विविधताओं की भाषा और सहजताओं की भाषा है,
सभी देशों में बिखरी है,ये न्यारी-सी हिन्दी भाषा।
अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा…॥
त्रेता और द्वापर युग से जग में मान हिन्दी का,
रामायण राम की लीला,महाभारत है कृष्णा की।
भला जाने न कौन है रामायण पाठ को जग में,
कहेगा कौन न माने,गीता उपदेश की रस्में।
हमारा-आपका जीवन,जगत की जिन्दगी इसमेंं,
ये हिन्दी भाषा ही जोड़े सभी को सृष्टि से जग में।
अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा…
दिया है शून्य दुनिया को,बढ़ाता दस गुना गिनती,
मिले जिससे वही संख्या तभी दस गुन है बढ़ती।
तपस्या ओम शब्द से,जो सूरज गूंज करता है,
अविष्कारों का कहना सूर्य हर पल ओम भजता है।
हमें है गर्व हिन्दी पर जो सृष्टि का सृजन लगती,
युगों से जग में है बिखरी,सहज,सुन्दर भी लगती।
अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा…॥
परिचय-हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।