जागो

बबीता प्रजापति झाँसी (उत्तरप्रदेश)****************************************** जाग गए हैंसूर्य नारायण,तुम क्यों अब तक सोते हो ?खिल उठे कमल सरोवरसमय सलोना क्यों खोते हो…? कमलों पर यूँबिखर रजत कण,रश्मियों सँगहोते जगमग,चिड़िया चहक उठी पेड़ों परक्या तुम अनोखे हो…। उठा के हल,कृषक चलेमरुभूमि भी उपजाऊ बने।धन्य हो कृषक तुम,धरा में श्रम के मोती बोते हो…॥

आओ कर लें नमन

डॉ. श्राबनी चक्रवर्तीबिलासपुर (छतीसगढ़)************************************************* सूर्य का ऊर्जावान प्रकाश,हमेशा हमारे साथ हैचाँद की रुपहली चमक,रात भर उज्ज्वल है। सितारे आसमान पर,झिलमिलाते हैं धीमे-धीमेधरती माँ ने दिया है देखो,अपना ममता भरा आँचल। नीले गगन के नीचे परिंदों की तरह,खुली साँस ले सकते हैं हमनदियाँ दें जीवनदायिनी जल,ऊँचे पर्वत रक्षक हैं सीमा पर। वृक्ष दें हमें ताजी पवन,अनाज, … Read more

लक्ष्मीबाई थीं वीरों की वीर

प्रो.डॉ. शरद नारायण खरेमंडला(मध्यप्रदेश)******************************************* लक्ष्मीबाई नाम था, वीरों की थी वीर।राज्यहरण उसका हुआ, तो चमकी शमशीर॥ ब्रिटिश हुक़ूमत से भिड़ी, रक्षित करने राज।नमन आज तो कर रहा, देखो सकल समाज॥ शौर्यवान रानी प्रखर, जिसका मनु था नाम।उसके कारण ही बना, झाँसी पावनधाम॥ स्वाभिमान को धारकर, छेड़ दिया संग्राम।झाँसी दे सकती नहीं, हो कुछ भी अंज़ाम॥ … Read more

यही हकीकत

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’बेंगलुरु (कर्नाटक) ************************************************* यही हकीकत ज़िंदगी, पौरुष हो जयगान।सामाजिक सेवा सुयश, सार्थक जीवन मान॥ आलस जीवन शत्रु है, राह बने प्रतिकूल।समझ हकीकत विफलता, आलस कर निर्मूल॥ लोकतंत्र तब हो सफल, शिक्षित हों जन देश।हो प्रबंध बिन भेद के, शिक्षा का परिवेश॥ रखो आस्था कर्म पर, बढ़ो सुपथ परमार्थ।कार्य तभी सम्पूर्ण हो, प्रगति … Read more

संध्या रजनी का आलिंगन

संजीव एस. आहिरेनाशिक (महाराष्ट्र)********************************************* ढले-ढले रविराज अभी जो हुए हैं देहरी पार,रक्तिम, स्वर्णिम वर्णों का पसरा है अम्बारऊँचे-ऊँचे पहाड़ों पर फैले संध्या के अभिसार,उलझा-उलझा आकाश है आखिर क्या है सार! गुलाबी सिंधुरी पखरण है जहाँ अस्त हुआ सूरज,आशा भरे क्षितिजों ने अभी भी खोया नहीं धीरजकिरणों की याद में पहाड़ों की चोटियाँ हुई नीरज,कलियाँ जो … Read more

शिक्षक है जीवन

बबिता कुमावतसीकर (राजस्थान)***************************************** शब्दों से गढ़ती है जीवन, ज्ञान का सागर भरती है। भ्रम के बादल दूर भगाती, माँ-सी ममता देती है। छिपी प्रतिभा बाहर निकालती, वाणी में संस्कार भरती है। हर प्रश्न का उत्तर बनती, सच्चा सहारा बन जाती है। कक्षा में मुस्कान है लाती, वह कल का निर्माण करती है। शिक्षा का आधार … Read more

गुल्लक का खेल

सरोजिनी चौधरीजबलपुर (मध्यप्रदेश)********************************** गुल्लक को देखा जब मैंनेबचपन आँखों में तैर गया,याद मुझे आयी छुटपन कीकैसा माँ ने खेल किया। सबको गुल्लक बाँटी थी औरबोली इस पर नाम लिखो,अपनी-अपनी सभी सम्हालोफिर देखो यह काम करो। पास तुम्हारे रंग पड़े हैंइसको खूब सजाओ तुम,जो कुछ पास में रखा हैउससे काम चलाओ तुम। रोज़ मैं दूँगी एक … Read more

पिता को समझना आसान नहीं

कल्याण सिंह राजपूत ‘केसर’देवास (मध्यप्रदेश)******************************************************* वो भावनाओं में नहीं,वह जिम्मेदारियों को निभाने मेंपूरे जीवन को दाँव पर लगा देता है। पत्नी की मुस्कराहट,बच्चों के सपनों को पूरी शिद्दत और लगन से पूरा करता हैनारियल के सामान पिता,परिजनों को क्रूर, कुरूप, सख्त लगता है। एक समय के बाद कहाँ समझते, उनके जज्बातों,भावनाओं, विचारों को…जो पिता पूरी … Read more

ढलती सांझ की लालिमा

डॉ. विद्या ‘सौम्य’प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)************************************************ ढलती सांझ की लालिमा के संग-संग,जैसे जल जाते थे…चिमनी की ढिबरी में दीए,और…जगमगा जाते थे जैसे लालटेन की रोशनी में,बंद बस्तों से निकली किताबों के,एक-एक अक्षर…जल जाती थी जैसे चूल्हे में लगी लकड़ियाँ,चढ़ जाते थे जैसे पतीलों पर अनाज के दानेउसी तरह चढ़ती रही मैं भी,बलिदान की अनचाही वेदियों परऔर … Read more

बिदाई

सरोजिनी चौधरीजबलपुर (मध्यप्रदेश)********************************** मन हो रहा है अधीरबेटी कैसे धरूँ मैं धीर,बाबा ने ढूँढा है घर-वर बिटियामाता के नयनों की नूरजो बेटी मेरी प्राण से प्यारी,कैसे रहूँगी उससे दूरशुभ घड़ी आयी, बाजी शहनाई,द्वारचार की रीतिपरछन कर माता दूल्हे को देखेंनयनों में बढ़ी प्रीति। मंडप अंदर बैठे हैं दूल्हे राजा,बन बेटी के मीतकन्यादान दिए पित-माताफिर भाँवर … Read more