हिंदी:बदलते भारत के परिवेश का दर्पण

डॉ. मीना श्रीवास्तवठाणे (महाराष्ट्र)******************************************* भक्ति, संस्कृति, और समृद्धि की प्रतीक ‘हिन्दी’ (हिन्दी दिवस विशेष)… “निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।” -भारतेंदु हरिश्चंद्रसाहित्यिक अनुभूति एवं अभिव्यक्ति के लिए व्यक्तिगत व सांस्कृतिक सभ्यता की स्वतंत्रता आवश्यक होती है। मुग़ल सल्तनतों के आक्रमण का विरोध करने वाले राजा, भक्तिमार्ग का प्रसार करने वाले संत, विलासिता को … Read more

भारतीय समाज की आत्मा को जोड़ने वाला सेतु ‘हिन्दी’

डॉ. मुकेश ‘असीमित’गंगापुर सिटी (राजस्थान)******************************************** भक्ति, संस्कृति, और समृद्धि का प्रतीक ‘हिंदी’ (हिंदी दिवस विशेष)… प्राचीन काल से ही भारतीय साहित्य ,सामाजिक संरचना और संस्कृति में हिंदी भाषा का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण और व्यापक है। हिंदी भाषा ने अखंड भारत की आत्मा में भक्ति, संस्कृति और समृद्धि को अक्षुण्ण बनाए रखा है। महात्मा गांधी ने … Read more

‘हिन्दी’ तिलक, दबाने की नहीं; ऊपर उठाने की आवश्यकता

ललित गर्ग दिल्ली************************************** भक्ति, संस्कृति, और समृद्धि का प्रतीक ‘हिंदी’ (हिंदी दिवस विशेष)…. सम्पूर्ण भारत में १४ सितम्बर को प्रतिवर्ष हिन्दी-दिवस के रूप में मनाया जाता है। हिंदी दिवस मनाने की आवश्यकता क्यों महसूस हुई और आज इस दिवस की अधिक प्रासंगिकता क्यों उभर रही है ?, क्योंकि हमारे देश में दिन-प्रतिदिन हिंदी की उपेक्षा … Read more

समाज तथा परिवार के मध्य महती सेतु ‘शिक्षक’

रश्मि लहरलखनऊ (उत्तर प्रदेश)************************************************** शिक्षक समाज का दर्पण… आलेख /सब ओल्ड /, समाज के निर्माण में परिवार के पश्चात मुख्य भूमिका शिक्षक की होती है। परिवार से बच्चे पीढ़ियों पुराने रीति-रिवाज, दीर्घकालीन चलने वाली रूढ़िवादिता के साथ-साथ सांस्कृतिक तथा सामाजिक चेतना जगाने वाले अनेक विचारों से स्वयं को प्रभावित पाते हैं। उनके बाल मन में … Read more

सफलता हाथ लगते ही ठंडे बस्ते में डाल दिया हिंदी-उर्दू को

प्रो. देवराजइम्फाल********************************** हाल-ए-बंगाल… कलकत्ता विवि के पूर्व प्रोफेसर डॉ. अमरनाथ ने पश्चिम बंगाल शासन द्वारा जारी डब्ल्यू बी.सी. एस. परीक्षा से हिंदी और उर्दू को बाहर निकाल कर, यह परीक्षा केवल बांग्ला और नेपाली भाषाओं में आयोजित करवाने संबंधी अधिसूचना का जो मुद्दा उठाया है, वह सभी भारतीय भाषाप्रेमियों को चिंतित करने वाला है। राज्य … Read more

विद्यार्थी का सर्वांगीण विकास ही शिक्षक का कर्तव्य

प्रो.डॉ. शरद नारायण खरेमंडला(मध्यप्रदेश)******************************************* शिक्षक समाज का दर्पण…. अच्छा शिक्षक उत्साही, मिलनसार, सहज, शिक्षार्थियों के साथ तालमेल विकसित करने में सक्षम, अपने छात्रों के विकास के लिए प्रतिबद्ध, मिलनसार, शिक्षार्थियों में लोकप्रिय और आदर्श प्रतिमान के रूप में अपनी स्थिति के प्रति हमेशा सचेत होता है। एक अच्छे शिक्षक में कई तरह के कठोर और … Read more

सब-कुछ मिलता है, आप तैयार हो ना…

हरिहर सिंह चौहानइन्दौर (मध्यप्रदेश )************************************ एक संस्था के आफिस में मैनेजर फोन पर बोल रहा था-“आजकल तो हर चीज किराए पर मिल जाती है। चकाचौंध भरी दुनिया में आधुनिकता का तड़का लगा हुआ है। इसके चलते जीवन-मरण, सुख-दु:ख व हर एक के लिए यहाँ सब-कुछ तैयार मिलता है। शादी- सगाई के लिए टेलेंटेड बन्दे मिल … Read more

मुख्यमंत्री के झूठे वादे और हमारे सरोकार

प्रो. अमरनाथकलकत्ता (पश्चिम बंगाल )**************************** हाल-ए-बंगाल… कल के ‘प्रभात खबर’ की खबर देखकर चौंक गया। ११ जनवरी २०२४ की पत्रकारवार्ता मैंने भी देखी थी। मुख्यमंत्री का आश्वासन पाकर मैंने भी खुशी मनायी थी। सार्वजनिक रूप से आश्वासन देकर बाद में मुकर जाना ममता बनर्जी के आचरण में मैंने पहली बार देखा और उनसे मोहभंग भी … Read more

‘रावण’ पत्नी होकर भी सदगुणी-पतिव्रता रही ‘मंदोदरी’

डॉ. मीना श्रीवास्तवठाणे (महाराष्ट्र)******************************************* पंचकन्या (भाग ७)… प्रात:स्मरणअहल्या द्रौपदी सीता तारा मंदोदरी तथा।पंचकन्या ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशनम्॥इस भाग में हम सकल गुणवती पंचम पंचकन्या मंदोदरी के बारे में और जानेंगे। मंदोदरी एक समय सीता के बारे में कहती है,-“सीता मेरे जितनी रूपमती नहीं, परन्तु वह इंद्र की पत्नी शची तथा चंद्र की पत्नी रोहिणी के समान … Read more

बाजारीकरण के युग में शिक्षक की नई भूमिका

डॉ. मुकेश ‘असीमित’गंगापुर सिटी (राजस्थान)******************************************** शिक्षक समाज का दर्पण… हर साल ५ सितंबर को जब ‘शिक्षक दिवस’ मनाया जाता है, तो हमें बचपन के वो सुनहरे दिन याद आ जाते हैं, जब शिक्षक सिर्फ शिक्षक हुआ करते थे, बाज़ार के विक्रेता नहीं। तब शिक्षा एक पवित्र कर्म थी, जिसे प्रदान करने वाले गुरु कहलाते थे, … Read more