माया मिली ना राम, क्या होगा…

हरिहर सिंह चौहानइन्दौर (मध्यप्रदेश )************************************ राजनीति की गलियों में चुनाव के समय सब अपने-अपने स्तर पर गोटी फिट करने में लगे रहते हैं, क्योंकि जहां आस है, वहीं विश्वास भी है। शोर-शराबे की दहलीज को पार कर अमर्यादित टिप्पणी व भाषाओं के तर्पण में ‘मत’ की तलाश में रहते हैं लोग…, क्योंकि शतरंज की राजनीतिक … Read more

संध्या रजनी का आलिंगन

संजीव एस. आहिरेनाशिक (महाराष्ट्र)********************************************* ढले-ढले रविराज अभी जो हुए हैं देहरी पार,रक्तिम, स्वर्णिम वर्णों का पसरा है अम्बारऊँचे-ऊँचे पहाड़ों पर फैले संध्या के अभिसार,उलझा-उलझा आकाश है आखिर क्या है सार! गुलाबी सिंधुरी पखरण है जहाँ अस्त हुआ सूरज,आशा भरे क्षितिजों ने अभी भी खोया नहीं धीरजकिरणों की याद में पहाड़ों की चोटियाँ हुई नीरज,कलियाँ जो … Read more

शिक्षक है जीवन

बबिता कुमावतसीकर (राजस्थान)***************************************** शब्दों से गढ़ती है जीवन, ज्ञान का सागर भरती है। भ्रम के बादल दूर भगाती, माँ-सी ममता देती है। छिपी प्रतिभा बाहर निकालती, वाणी में संस्कार भरती है। हर प्रश्न का उत्तर बनती, सच्चा सहारा बन जाती है। कक्षा में मुस्कान है लाती, वह कल का निर्माण करती है। शिक्षा का आधार … Read more

संग्रह की कविताएं पाठकों को सकारात्मकता से जोड़े रखेंगी

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इंदौर (मप्र)। आज लग रहा है कि नायकों की परिभाषा बदल गई है और आज एक लेखक का नायक की तरह स्वागत किया जा रहा है। संग्रह की कविताएं पाठकों को जीवन की चुनौतियों के बीच भी आशा और सकारात्मकता से जोड़े रखेंगी।मुख्य वक्ता पंकज सुबीर ने यह बात कही। अवसर रहा लेखिका कोमल रामचंदानी … Read more

आ अब लौट चलें उस छाँव में…

राधा गोयलनई दिल्ली****************************************** “राजू! हम यहाँ परदेस में आ तो गए हैं, लेकिन अब इतनी मेहनत नहीं होती। अच्छी-भली हमारी खेती की जमीन थी। खेती-बाड़ी करते थे। पता नहीं, किस झोंक में शहर में मजदूरी करने आ गए। सड़ी गर्मी में खाना भी खुद पकाना पड़ता है। फिर तपती धूप में दिन भर सर पर … Read more

गुल्लक का खेल

सरोजिनी चौधरीजबलपुर (मध्यप्रदेश)********************************** गुल्लक को देखा जब मैंनेबचपन आँखों में तैर गया,याद मुझे आयी छुटपन कीकैसा माँ ने खेल किया। सबको गुल्लक बाँटी थी औरबोली इस पर नाम लिखो,अपनी-अपनी सभी सम्हालोफिर देखो यह काम करो। पास तुम्हारे रंग पड़े हैंइसको खूब सजाओ तुम,जो कुछ पास में रखा हैउससे काम चलाओ तुम। रोज़ मैं दूँगी एक … Read more

पिता को समझना आसान नहीं

कल्याण सिंह राजपूत ‘केसर’देवास (मध्यप्रदेश)******************************************************* वो भावनाओं में नहीं,वह जिम्मेदारियों को निभाने मेंपूरे जीवन को दाँव पर लगा देता है। पत्नी की मुस्कराहट,बच्चों के सपनों को पूरी शिद्दत और लगन से पूरा करता हैनारियल के सामान पिता,परिजनों को क्रूर, कुरूप, सख्त लगता है। एक समय के बाद कहाँ समझते, उनके जज्बातों,भावनाओं, विचारों को…जो पिता पूरी … Read more

जीत से उभरी नई उम्मीदें और गहरी चुनौतियाँ

ललित गर्ग दिल्ली*********************************** बिहार का यह चुनाव केवल एक राजनीतिक मुकाबला नहीं था, बल्कि लोकतंत्र की चेतना, जनता के विश्वास और नेतृत्व की विश्वसनीयता को परखने का अवसर भी था। परिणाम जिस तरह सामने आए, उन्होंने न केवल बिहार;बल्कि पूरे देश एवं दुनिया को चौका दिया। यह जीत केवल गठबंधन की सामूहिक ताकत की नहीं, … Read more

ढलती सांझ की लालिमा

डॉ. विद्या ‘सौम्य’प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)************************************************ ढलती सांझ की लालिमा के संग-संग,जैसे जल जाते थे…चिमनी की ढिबरी में दीए,और…जगमगा जाते थे जैसे लालटेन की रोशनी में,बंद बस्तों से निकली किताबों के,एक-एक अक्षर…जल जाती थी जैसे चूल्हे में लगी लकड़ियाँ,चढ़ जाते थे जैसे पतीलों पर अनाज के दानेउसी तरह चढ़ती रही मैं भी,बलिदान की अनचाही वेदियों परऔर … Read more

बिदाई

सरोजिनी चौधरीजबलपुर (मध्यप्रदेश)********************************** मन हो रहा है अधीरबेटी कैसे धरूँ मैं धीर,बाबा ने ढूँढा है घर-वर बिटियामाता के नयनों की नूरजो बेटी मेरी प्राण से प्यारी,कैसे रहूँगी उससे दूरशुभ घड़ी आयी, बाजी शहनाई,द्वारचार की रीतिपरछन कर माता दूल्हे को देखेंनयनों में बढ़ी प्रीति। मंडप अंदर बैठे हैं दूल्हे राजा,बन बेटी के मीतकन्यादान दिए पित-माताफिर भाँवर … Read more