करके श्रम हारे नहीं
डॉ. गायत्री शर्मा’प्रीत’कोरबा(छत्तीसगढ़)******************************************* करते श्रम दिन-रात वो, करें नहीं आराम। निर्मित करते हैं सदा, घर-मंदिर से धाम॥ पर्वत-पत्थर काट कर, देते हैं नव रूप। औरों को सुख दे रहे, खाते दिनभर धूप॥ कदम कभी रुकते नहीं, करें नहीं आराम। कंकड़ पत्थर जोड़ते, करते जाते काम॥ दुर्गम पर्वत तोड़ते, लोहे जैसे हाथ। नई दिशाएं दे रहे, … Read more