जो दर्द मिला, मन उबर न पाएगा
दीप्ति खरेमंडला (मध्यप्रदेश)************************************* बादल गरजे पानी बरसा,पर इस बार था मंजर डर कानदियों में बस धाराएं नहीं थी,इनमें थी प्रलय की परछाई। नदियाँ बनी कहर की मूरत,बहा ले गईं अमन और चैनखेत बने हैं जल का दरिया,अब स्वप्न विहीन रीते-रीते हैं नैन। जिस आँगन में गूँजती थी हँसी,वहाँ अब बस पानी-पानी हैसहमा-सहमा सा आलम है,मानों … Read more