कर्म का फल
सरोज प्रजापति ‘सरोज’मंडी (हिमाचल प्रदेश)*********************************************** अतिवृष्टि, हिमअंचल ढह रहे,क्या बयां करें, सब धुआं-धुआं हो रहेहिमनद मौन नहीं, तांडव ढा रहे,पिघल भयावह, दैत्य रूप धरे। पर्वत चट, सीना चीर दिखा रहे,सुनो हे मद स्वावलंबी मानवहस्तक्षेप, विधना क्यों कर रहे ?सीना छलनी कर, सिर धुन रहे। निर्लज्ज इंसान, हेय करणी कर रहे,फटती धरती जीवन निगल रहीदोषी-निर्दोष समभाव, … Read more