नोंक-झोंक

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’बेंगलुरु (कर्नाटक) ************************************************* नोंक-झोंक अविरत कलह, खींचतान परिवार।सात जन्म सतफेर भी, पति-पत्नी तकरार॥ अधिकारी वर्चस्व का, तू-तू मैं-मैं रोज।जीवन संगी परस्पर, नित्य कलह की खोज॥ नैहर चर्चा कलह की, वजह कलह शुरूआत।पत्नी दावानल बनी, खोती खुद जज़्बात॥ असहनीय निंदा तनिक, मातु-पिता परिवार।दुर्गा फिर काली बनी, रौद्र रूप अवतार॥ खाना-पीना बन्द सब, बही … Read more

फिर सावन आ गया

प्रीति तिवारी कश्मीरा ‘वंदना शिवदासी’सहारनपुर (उप्र)************************************************** शिव जी को जल चढ़ाने फिर से सावन आ गया है।मेरे मन को मेघ बन के फिर बरसना भा गया है॥ शिव को सावन मास भाये और भायें वर्षा बूँदें,भक्त लीन हैं भक्ति में अब अपनी पलकें मूंदें।हर कोई अभिषेक करने मंदिर में आ गया है,शिव जी को जल … Read more

ऊँची उड़ान

डॉ. संजीदा खानम ‘शाहीन’जोधपुर (राजस्थान)************************************** अगर पंख लिख सकते तो इतिहास लिखती,सपना जो देखा उसकी उड़ान लिखती। आसमान में उड़ती, ऊँची उड़ान लिखती,दुनिया में एक बड़ी पहचान लिखती। अपना एक खूबसूरत जहानलिखती,टूटे न रिश्ते और परिवार ऐसा मकाम लिखती। मैं न दर्द में रहूं और कोई भी इंसान का दर्द समझ सकूं ,दूर दर्द कर … Read more

मानवता की ओर कदम कब ?

डॉ. श्राबनी चक्रवर्तीबिलासपुर (छतीसगढ़)************************************************* आज बहुत दिनों बाद,जब किसी अपने को याद कियाउनसे बात किया,तो वह सारी पुरानी यादेंएकाएक आँखों से सामने,संजीदा हो गईवो एक-दूसरे केसुख-दु:ख में साथ देना,वो बचपन से लेकर जवानी तकएक-दूसरे के घर आना-जाना,कुशल-क्षेम पूछना। महफ़िल की जान बनकर,मौज-मस्ती में दिन बितानाफिर प्रौढ़ावस्था में सुबह-शाम,एकसाथ सैर पर जाते हुएगली-मोहल्ले के लोगों की,खैरियत … Read more

जुगनुओं की सवारी

संजीव एस. आहिरेनाशिक (महाराष्ट्र)********************************************* घनघोर तमस की कालिमा में ये फूट रही चिंगारी है,रह-रहकर ये उजल रही जाने कैसी ये अंगारी हैलगता है गहन तमस में उड़ रही प्रकाश की सवारी है,कितनी मोहक कैसी अनुपम यहाँ वहाँ उड़ती जुगनुओं की सवारी है। लगता है कि आसमां के कुछ तारों ने लगा लिए पंख है,अंधियारी कालिमा … Read more

सपनों की चाह

हरिहर सिंह चौहानइन्दौर (मध्यप्रदेश )************************************ कितने रंग हैं ज़िन्दगी के,बहुत कुछ मांगते हैं हमपर वह हक़ीक़त में पूरे नहीं होते,क्योंकि वह सपनों की चाह होती है। नीचे धरती पर बैठ,ऊपर दूर गगन को देखते हुए हमबहुत उम्मीदें लगा लेते हैं,पर वह सपनों की चाह होती है। हम बहुत-सी उम्मीदें रखते हैं,पर वह पूरी होती नहींक्योंकि … Read more

काश! मुझे भी बेटी होती

डॉ. विद्या ‘सौम्य’प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)************************************************ उदयाचल के उत्तुंग शिखर से,बिखरती धरा पर अरुणाई-सीचहचहाती भोर में, पंछियों के गीतों-सी,मंद-मंद वायु तरंग से जैसेसुरभित होता है कण-कण,मेरे आँगन को महकाती…काश! मुझे भी बेटी होती। छोटे-छोटे क़दमों से,रुन-झुन की आवाजें आतीकभी भागती माँ के पीछे,कभी आँचल में आ छुप जाती रजनी में जलते दीए-सी,जीवन को रोशन कर जाती…काश! … Read more

सावन का झूला

ममता साहूकांकेर (छत्तीसगढ़)************************************* झूम के सावन आया है,सखियों की याद दिलाई है। देखो सुंदर हरियाली में,पेड़ों की ऊँची डाली में। दूर तक पेंग लगाती है,नभ को छूकर आती है। ऊपर-नीचे आते-जाते,जीवन का पाठ पढ़ाती है। सावन का प्यारा झूला,सबका मन हर्षाता है। रिमझिम-रिमझिम सी फुहार,खुशियों की बहार लाती है। आपस के बैर भुलाकर,सबको गले मिलवाती … Read more

वफ़ा ढूंढते लोग…

हिमांशु हाड़गेबालाघाट (मध्यप्रदेश)**************************************** बड़े भोले हो, वफ़ा ढूंढते हो,चतुर चालाक समय में, ईमानदार ढूंढते हो। समय की रूपरेखा बनाने वाले,सबको अपना कहने वालेसर्वोच्च न्योछावर करने वाले,बड़े भोले हो, वफ़ा ढूंढते हो…। यहाँ वही जिंदा बच पाएगा,जो हर परिस्थिति में खड़ा नजर आएगाआँखों की पलकों को झपकाने वालों,सबको अपना बतलाने वालों।बड़े भोले हो, वफ़ा ढूंढते हो… … Read more

राखी-बात कुछ और है

संजय वर्मा ‘दृष्टि’ मनावर (मध्यप्रदेश)******************************** ‘रक्षाबंधन’ पुनीत पर्व की बात कुछ और है,बहनों के घर आगमन की बात कुछ और हैआशीर्वाद के माहौल की बात कुछ और है,बहनों की खुशियों की बात कुछ और हैबस, बंधा हो कलाई में राखी का रक्षा कवच। राखी यादों को संजोने की बात कुछ और है,मिठाई-उपहार देने की बात कुछ … Read more