प्रेम विहीन रिश्ते

डॉ. प्रताप मोहन ‘भारतीय’सोलन (हिमाचल प्रदेश)***************************************************** कहाँ गया रिश्तों से प्रेम…?… आजकल रिश्तों से,प्रेम कहीं खो गया हैप्रेम से तो बिछड़े,एक जमाना हो गया है। आजकल बनते हैं,पैसे से रिश्तेयदि आप धनवान हैं,तो सब बनाएंगे रिश्ते। सगा गरीब रिश्तेदार भी,किसी को नहीं सुहाता हैअमीर हो कोई दूर का रिश्तेदारवह सबको भाता है। आजकल प्रेम की … Read more

बरखा के रंग

दीप्ति खरेमंडला (मध्यप्रदेश)************************************* मदमाती वर्षा ऋतु आई,तपती धरती की तपन मिटाईरिमझिम-रिमझिम बरसे मेघा,सबके मन में हैं खुशियाँ छाईं। बादल गरजे, बिजली चमके,बूँदों ने बारात सजाईहरी चुनरिया ओढ़ धरा भी,पावस के स्वागत में मुस्काई। कुछ बूँदें रोकी सूरज ने,इंद्रधनुष सजा दियाधरती संग अम्बर ने भी,श्रृंगार अपना कर लिया। नदियाँ भी उन्मुक्त वेग सेबह रहीं किनारा छोड़करआलिंगन … Read more

आओ! मानवता का धर्म निभाएँ

प्रो.डॉ. शरद नारायण खरेमंडला(मध्यप्रदेश)******************************************* मानवता का धर्म निभाएँ, रीति-नीति को हम अपनाएँ।करुणा-दया, नेहपथ जाएँ, परहित को आचार बनाएँ॥ भूखे को रोटी देकर हम, मंगलमय जीवन कर जाएँ,गहन तिमिर में प्रखर उजाला, जग को हम खुशहाल बनाएँ।दीन-दुखी के आँसू पौंछें, उनके लब मुस्कान सजाएँ,करुणा-दया, नेहपथ जाएँ, परहित को आचार बनाएँ…॥ ऊँच-नीच को तजकर हम अब, समरसता … Read more

कुदरत का कहर तो बरपेगा

हेमराज ठाकुरमंडी (हिमाचल प्रदेश)***************************************** उजड़ रही है देखो बस्तियाँ आज,उजड़ रहे हैं सब खेत-खलियानवह दिन भी शायद दूर नहीं अब,जब बन जाएगी धरती ही श्मशान। न कार रहेगी, न कोठियाँ तब,न घर रहेंगे और न ही तो मकाननदी-नालों में बहती लाशें दिखेगी,पहाड़ बनेंगे सब सपाट मैदान। विकास के नाम पर लूट मचाई है,भ्रष्टाचार की अब … Read more

घमंड की हवा रिश्तों को उड़ाने लगी

संजय वर्मा ‘दृष्टि’ मनावर (मध्यप्रदेश)******************************** कहाँ गया रिश्तों से प्रेम…? कहाँ गयारिश्तों से प्रेम,जब देखा रिश्तों की मिठाई परदौलत का वर्क चढ़ने से,दौलत वाले लोगों कोमिठाई मिलने से,रिश्तों से प्रेम भाप बनकरउड़ने लगा। कोई कुछ मांग न ले,घमंड की हवा ऐसे लगी किवो रिश्तों को हवा में उड़ाने लगी,दूरियों का फासला,रिश्तों के पुल को ढहाने लगा।और … Read more

फूलों की महक निराली

कमलेश वर्मा ‘कोमल’अलवर (राजस्थान)************************************* नन्हे फूलों की फुलवारी,महक रही है डाली-डालीखिले बाग में सुमन निराले,कितने सुंदर, कितने प्यारे। महक उठा है उपवन सारा,हुआ गुलसितां महका न्याराफूलों से लद गई हर डाली,पुष्प बन गई कलियाँ सारी। गेंदे की महक है निराली,माला बनती है मतवालीरंग-बिरंगे फूल निराले,कितने सुंदर, कितने प्यारे। जब फूलों से माला बनती,हर घर में … Read more

बच्चों की बारिश

सरोजिनी चौधरीजबलपुर (मध्यप्रदेश)********************************** करते उत्पात,ठहाकों की बातज़ोरों की बरसात,मिली जैसे सौग़ात। लेकर हाथों में हाथ,भीगते साथ-साथलगाते मिट्टी माथ,दोस्तों का था साथ। बारिश जब आती,मस्ती रंग लातीवानर सेना बन जाती,खूब उधम मचाती। पानी खूब उछालते,मस्ती में खूब नाचतेइन्हें देख हम भरमाते,चलो बच्चे बन जाते। खिड़की से देख रही,मगन मन बोल रही।बचपन याद कर रही,कविता मैं लिख … Read more

मंज़िल जरूर मिलेगी दोस्तों

हरिहर सिंह चौहानइन्दौर (मध्यप्रदेश )************************************ हौसला मजबूत हो तो हरमुश्किल आसान होती है,हार के बाद जीत होती हैमंज़िल जरूर मिलेगी दोस्तों। जीवन की डगर कठिन हैउलझनों भरा यहाँ सफ़र है,हर चुनौती से तू संघर्ष कर लेमंज़िल जरूर मिलेगी दोस्तों। बाहर बहुत अन्धकार हैतू हिम्मत और ताकत से आगे बढ़,ऊँचाइयों की और बढ़ने में फिसलन होती … Read more

सावन के स्वर मधुरिम

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’बेंगलुरु (कर्नाटक) ************************************************* सावन के स्वर मधुरिम रिमझिम बरसे घन घनघोर घटाएँ,सतरंगी पंखों से शोभित, खोल मोर चहुँ नृत्य दिखाए। दमक रही बिजुली चहुँ अम्बर, धमक गर्जना लोक डराए,नव यौवन बदरा घन श्यामल, विरहानल नयनाश्रु बुझाए। घटा वेदना संवेदित घन, घनन- घनन बरखा बरसाए,खोले पंखों मोर मनोहर, नाच व्यथा प्रिय घन बरसाए। … Read more

हिंदी प्रयोग, सहयोग, विरोध और गतिरोध

डॉ.शैलेश शुक्लाबेल्लारी (कर्नाटक)**************************************** हिंदी राजभाषा बनी, पर व्यावहारिकता से दूर,नियम किताबों में सजे, पर मन में कसक भरपूर। दफ्तर-दरबारों में बस, अंग्रेजी का ही राज,हिंदी जैसे भीख में, माँगे अपना काज। कहने को सरकारी है, पर दिखती है उपेक्षित,आदेशों की बाढ़ है, पर क्रियान्वयन वंचित। भले नीति बने सौ बार, जब मन न हो साफ़,तो … Read more