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शहर आ गया…

संजय जैन 
मुम्बई(महाराष्ट्र)

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मैं यहां से वहां,
वहां से जहां में
चार पैसे कमाने,
जहाँ में भटकता रहा।

छोड़कर माँ-बाप और,
भाई-बहिन,पत्नी को
चार पैसे कमाने,
शहर आ गया।

छोड़कर गाँव की,
आधी रोटी को
पूरी के चक्कर में,
शहर आ गया।

अब न यहाँ का रहा,
न वहाँ का रहा
सारे संस्कारों को,
अब भूल-सा गया।।

गाँव की आज़ादी को,
मैं समझ न सका
देखकर शहर की,
चकाचौंध को।

मैं बहक कर गाँव से,
शहर आ गया
और मुँह से आधी रोटी,
भी मानो छूट गई।

सुबह से शाम तक,
शाम से रात तक
रात से सुबह तक,
सुबह से शाम तक।

मैं एक मानव से,
मानवमशीन बन गया
फिर भी गाँव जैसा मान,
शहर में न पा सका॥

चार पैसे कमाने,
यहाँ-वहाँ भटकता रहा।
छोड़कर गाँव को,
मैं शहर आ गया…॥

परिचय– संजय जैन बीना (जिला सागर, मध्यप्रदेश) के रहने वाले हैं। वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। आपकी जन्म तारीख १९ नवम्बर १९६५ और जन्मस्थल भी बीना ही है। करीब २५ साल से बम्बई में निजी संस्थान में व्यवसायिक प्रबंधक के पद पर कार्यरत हैं। आपकी शिक्षा वाणिज्य में स्नातकोत्तर के साथ ही निर्यात प्रबंधन की भी शैक्षणिक योग्यता है। संजय जैन को बचपन से ही लिखना-पढ़ने का बहुत शौक था,इसलिए लेखन में सक्रिय हैं। आपकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। अपनी लेखनी का कमाल कई मंचों पर भी दिखाने के करण कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इनको सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के एक प्रसिद्ध अखबार में ब्लॉग भी लिखते हैं। लिखने के शौक के कारण आप सामाजिक गतिविधियों और संस्थाओं में भी हमेशा सक्रिय हैं। लिखने का उद्देश्य मन का शौक और हिंदी को प्रचारित करना है।