डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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आज मेरे शहर को ये क्या हो गया है,
वो मीठा से रिश्ता कहाँ खो गया है।
कभी हुआ करती थी ऐसी भी होली,
निकलती थी मस्तों मलंगों की टोली
उड़ा करता गुलाल अबीर मेघ बनकर,
बनती थी मोती रंग की बूंदें बरस कर
थिरकता बुढ़ापा था बनकर जवानी,
जवानी देख हो जाती थीं पानी-पानी।
खफ़ा जाने क्यूँ अब ख़ुदा हो गया है,
आज मेरे शहर को ये क्या हो गया है…॥
वो रातों को छुपकर लकड़ी चुराना,
होलिका खुद बनाकर झंडी सजाना
फिर टोली बनाकर मांगना सबसे चंदा,
बिना किसी लागत के था अच्छा धंधा
प्रह्लाद के पीछे खूब होती थी लड़ाई,
तब समझाते थे आकर पिताजी भाई
चना चिरौंजी का फिर परसाद खाना,
लगता जैसे मिल गया कोई खजाना।
बड़े क्या हुए जैसे सब-कुछ खो गया है,
आज मेरे शहर को ये क्या हो गया है…॥
परिचय–डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी ने एम.एस-सी. सहित डी.एस-सी. एवं पी-एच.डी. की उपाधि हासिल की है। आपकी जन्म तारीख २५ अक्टूबर १९५८ है। अनेक वैज्ञानिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित डॉ. बाजपेयी का स्थाई बसेरा जबलपुर (मप्र) में बसेरा है। आपको हिंदी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। इनका कार्यक्षेत्र-शासकीय विज्ञान महाविद्यालय (जबलपुर) में नौकरी (प्राध्यापक) है। इनकी लेखन विधा-काव्य और आलेख है।