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‘कोरोना’ कहर

राधा गोयल
नई दिल्ली
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बहुत तरक्की कर ली तुमने,कई देशों को जीत लिया,
औद्योगिक क्रांति के कारण जग में बहुत विकास हुआ।
एक सूक्ष्म से परजीवी से सबका जीना हुआ मुहाल,
आज बैठ वो भी रोते हैं,जो थे पहले मालामाल।
सभी हेकड़ी धरी रह गई,विकसित खुद को कहते थे,
सूर्य अस्त होता न था जिनका,अहंकार में रहते थे।
सबको निगलना चाहते थे जो,अब मुँह छिपाए घूम रहे।
भारत देश की ओर सभी आशा की निगाह से देख रहे॥

सदियों तक अपमान किया,रौंदते रहे,लूटते रहे,
खुद को सबसे श्रेष्ठ सिद्ध करने की जुगत में लगे रहे।
हमको तो कंगाल किया और अपनी तिजोरी भरते रहे,
ग्लोबल वार्मिंग करके खुद को बहुत आधुनिक समझ रहे।
एक सूक्ष्म से परजीवी ने सबको इतना डरा दिया,
धरा रह गया सब विकास,घुटनों तक लाकर खड़ा किया।
चूर हुआ वो घमण्ड जो कितने वर्षों में कमाया था,
इक छोटे से जीव ने सबको घर में कैद कराया था॥

सबसे बड़ी शक्ति खुद को जो समझ-समझ इतराते थे,
जिनके इशारे पर दुनिया के नक्शे बदले जाते थे।
पूरी दुनिया का खुद को चौधरी समझते रहते थे,
अन्य देश पर हमला करने का मौका ढूँढते रहते थे।
आने वाले समय में जो सबको ही निगलना चाहते थे,
अपनी चौधराहट की सब पर धाक जमाना चाहते थे।
एक छोटे से परजीवी ने बतला दी उनकी औकात,
उनकी लालसाओं पर इसने किया भयंकर वज्राघात।

‘कोरोना’ का कहर हुआ,भारत से आशाएँ देख रहे,
आज सभी भारत की संस्कृति अपनाने को विवश हुए।
वेद ग्रन्थ सब नष्ट किए थे,नालन्दा को जला दिया था,
छह महीनों तक आग लगी,न जाने क्या कुछ नष्ट हुआ था।
जो मस्तक पर तिलक लगाते,उन्हें गँवार समझते हो,
उनसे ही क्यों आज कोरोना नाश का सूत्र पूछते हो ?
पढ़ो दोबारा उन वेदों को तुमने जिनको नष्ट किया,
माफी माँगो उन लोगों से जिनका कभी उपहास किया।

उन्हीं मन्दिरों में जाकर अब शंखनाद करना होगा,
उन्हीं मन्दिरों में जाकर अब शीश झुकाना ही होगा।
देवी-देवताओं का जो अपमान किया करते थे तुम,
और हमारी श्रद्धा का भोंडा मजाक करते थे तुम।
यज्ञ-हवन करने वालों को,अनपढ़ समझा करते थे,
अपने अनुसंधानों पर बेहद इतराते फिरते थे।
हमने तो रामायण काल में कीर्तिमान रच डाले थे,
बिना साधनों के समुद्र पर पुल निर्मित कर डाले थे॥

ऐसे-ऐसे अस्त्र बनाए,जो तुम सोच नहीं सकते,
ऐसे-ऐसे शास्त्र रचे,कल्पना नहीं तुम कर सकते।
एक कमी थी हममें जिसका तुमको बेहद लाभ मिला,
हम रहे अहिंसक सदा,उसी का तुमने फायदा उठा लिया॥
बहुत कर चुके सर्वनाश अब अहंकार को छोड़ो भी,
गम्भीर समस्या के निदान हित दिल को दिल से जोड़ो भी।
अब भी अगर नहीं चेते,तो सर्वनाश हो जाएगा,
भूमण्डल से प्राणी का अस्तित्व खत्म हो जाएगा।
चलो करें सब शंखनाद,हल करें समस्या का मिलकर,
‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ का भाव जगाओ मिल-जुल कर॥

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