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किसी छलावे में न आएं

मुद्दा:भारत को भारत कहो, इण्डिया नहीं-कुछ विचार व सुझाव

अरुणी त्रिवेदी-

आज से लगभग ११००० वर्ष पूर्व ऋषभदेव पुत्र भरत हुए थे। उनका दूसरा नाम बाहुबली भी था। आज भी बाहुबली की विशाल मूर्ति कर्नाटक में है। ‘बाहुबली’ नाम की फिल्म भी थोड़ा बहुत उस कहानी में अन्य बातें जोड़कर बनाई गई है जो अपने ऐतिहासिक रूप से पूर्ण सत्य नहीं है लेकिन पूरी तरह झूठी भी नहीं है। वे सतयुग में हुए, जबकि राम के भाई भरत और शकुंतला पुत्र भरत क्रमशः त्रेता युग एवं द्वापर युग में हुए। भारत का अर्थ है “जो सबका भरण पोषण करे” कितना अच्छा नाम लगता है। भारत ने सदियों तक दुनिया को खिलाया-पिलाया है। यूरोप और अमेरिका आदि महाद्वीपों के देशों में कुछ पैदा ही नहीं होता था। तब तो इतने सारे यूरोपीय व्यापारी भारत आए,वह भी इतना जोखिम उठाकर समुद्र के रास्ते से। भारत यदि कंगाल होता तो वे क्यों आते॥फिर वे ऋषभदेव के पुत्र भरत (न कि शकुंतला पुत्र भरत या राम के भाई भरत) के नाम पर भी हैं,जो विश्वविजयी हुए थे। उसमें एक गर्व की अनुभूति है।

डॉ. एम.एल. गुप्ता ‘आदित्य’-

भारत की बात आते ही इंडिया वाले सक्रिय हो गए हैं। इंडिया के मुद्दे पर प्रीतिश नंदी ने एक लेख में ने काफी ऊटपटाँग लिखा है,जिसमें उनका अंग्रेजियत का चिरपरिचित गुमान झलकता है। बहुत पहले एक बार टीवी पर जब उन्होंने लता मंगेशकर का साक्षात्कार किया तो स्वर कोकिला, भारत-गौरव-लता मंगेशकर लगातार हिंदी में जवाब देती रहीं और ये जनाब अपनी अंग्रेजी की अकड़ के चलते एक शब्द भी हिंदी में नहीं बोले। इन्होंने अपने अंग्रेजी के अहंकार को लता मंगेशकर से बहुत बड़ा बना दिया था। ये महोदय तो सीधे कह रहे हैं कि “इंडिया आजाद हुआ था,न कि भारत। और हाँ,मैं इंडिया में पैदा हुआ न कि भारत में। और मैं चाहता हूँ कि यह ऐसा ही रहे।” अब आप समझ लीजिए ये क्या हैं ? मैंने पिछले कुछ दिन में,जबसे ‘भारत बनाम इंडिया’ का मामला चला है,यह देखा है कि इंडिया समर्थक अनेक लोग विशेषकर अंग्रेजीपरस्त, इस विषय का रुख मोड़ने के लिए इस प्रकार की बातें करने लगे हैं कि क्यों ना इसका नाम भारतवर्ष रखा जाए,अखंड भारत रखा जाए, हिंदुस्तान रखा जाए और आज प्रीतिश नंदी ने कहा कि देश का नाम मेलुहा या आर्यवर्त रखा जाए। इन सबका एक ही उद्देश्य है कि मामले को इतना उलझा दिया जाए कि इंडिया बना रहे।
राजभाषा के नाम पर हिंदी को लेकर भी यही कुछ हुआ था और नतीजा यह है कि अंग्रेजी चिरकाल के लिए भारत की अघोषित राजभाषा बन चुकी है। ये वही लोग हैं। इसलिए किसी छलावे में न आएं हमें कोई नया नाम रखना ही नहीं है,हम तो केवल इंडिया शब्द को हटाने की बात कर रहे हैं।

(सौजन्य-वैश्विक हिंदी सम्मेलन,मुंबई)

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