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खुद से करो सवाल

सुनीता बिश्नोलिया
चित्रकूट(राजस्थान)
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धरती पर बादल घिरे,संकट के हैं आज।
पीछे संकट के छिपे,कुटिल मानसी काजll

जो बोता पाता सदा,बोने वाला आप।
खुद ही पीड़ा बाँटकर,मिलता है संतापll
कहने को मानव स्वयं,बन बैठा भगवान।
पर ईश्वर के कोप से,नहीं बचा इंसानll
खेल विधाता खेलता,होकर के नाराजl
पीछे संकट के छिपे,कुटिल मानसी काजll

मानव होकर मानवी,गुण को भूले लोगl
पशु बनकर करते रहे,मानस पशु का भोगll
डर-भय चेहरों पर दिखा,आँखों में संदेहl
छूट न जाए हाथ से,हाय! विधाता देहll
मगर स्वयं के कृत्य पर,नहीं आ रही लाज।
पीछे संकट के छिपे,कुटिल मानसी काजll

समय का रोना है नहीं,देख समय की चाल।
अंतर्मन में झांककर,खुद से करो सवालll
झूठी मस्ती कम हुई,फीके जीवन रंग।
अब जीवन का ले मज़ा,रह अपनों के संगll
इस विपदा के सामने,इक सुर में हर साज।
पीछे संकट के छिपे,कुटिल मानसी काजll

परिचय-श्रीमती सुनीता बिश्नोलिया का स्थाई निवास जयपुर स्थित चित्रकूट में है।आपकी जन्म तारीख ५ जनवरी १९७४ और जन्म स्थान सीकर (राजस्थान) है। आपकी शिक्षा-एम.ए.(हिन्दी )और बी.एड.है। आप अध्यापिका के रुप में जयपुर स्थित विद्यालय में कार्यरत हैं। इसी विद्यालय से प्रकाशित पत्रिका की सम्पादिका भी हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में भी रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं। डी.डी राजस्थान पर कविता पाठ और विवाह पूर्व आकाशवाणी जयपुर पर भी काव्यपाठ किया है। आपने सामाजिक क्षेत्र में चंडीगढ़ में ५ वर्ष तक बाल श्रमिकों को पढ़ाया एवं मुख्यधारा से जोड़ा। ऐसा ही कार्य यहाँ भी बाल श्रम एवं शोषण मुक्त भारत हेतु जारी है। लेखन विधा में गद्य-पद्य(कविताएँ-मुक्तक,यदा-कदा छन्दबद्ध)दोनों ही शामिल हैं। लघुकथा,संस्मरण,निबन्ध,लघु नाटिकाएँ भी रचती हैं। लेखन की वजह से आपको नारी सेवी सम्मान, उत्कृष्ट लेखिका सम्मान तथा अन्य संस्थाओं की तरफ से भी कई बार सर्वश्रेष्ठ लेखन हेतु पुरस्कृत किया गया है। आप ब्लॉग पर भी भावनाएं अभिव्यक्त करती हैं। बड़ी उपलब्धि यही है कि,कक्षा दसवीं का परिणाम १०० प्रतिशत देने हेतु मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा प्रशस्ति-पत्र,विभिन्न विद्यालयों में होने वाली वाद-विवाद स्पर्धाओं,लघु नाटिकाओं व अन्य कार्यक्रम हेतु छात्रों को विशेष तैयारी करवाना,अधिकांशत: प्रथम पुरस्कार एवं कई बार निर्णायक मंडल में भी शामिल रहना है। आपकी दृष्टि में लेखन का उद्देश्य-अपने ह्रदय में उठती भावनाओं के ज्वार को छुपाने में अक्षम हूँ,इसलिए जो देखती हूँ जो ह्रदय पर प्रभाव डालता है उसे लिखकर मानसिक वेदना से मुक्ति पा लेना है। लिखना मात्र शौक ही नहीं,वरन स्वयं अपनी लेखनी से लोगों को गलत के विरुद्ध खड़े होने का संदेश भी देना है।आपके २ साझा काव्य संग्रह प्रकाशनाधीन हैं।

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