माया मालवेन्द्र बदेका
उज्जैन (मध्यप्रदेश)
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मत डरना अबला बन,जीना अपनी शान से,
सबला है,सबला रहेगी,जीना मान-सम्मान से।
भारत की नारी है तू,देवी बन पूजी जाती है,
डरना फिर क्यों,अत्याचारी पापी इंसान से॥
याद कर झांसी की रानी की कूद गई थी रण में,
उस देवी को याद करना,सीख लेना बलिदान से।
हारती नहीं नारी कभी,विषम परिस्थिति आ जाए,
चामुंडा बन,काली बन,पापी डर जाए तेरी आन से॥
नारी नहीं,बहन,बेटी,माता,तू सृष्टि की जननी है,
अक्षुण्ण रहेगी सदा अविजित,डरे सब तेरी बान से।
आधुनिकता के रंग रंगी,मर्यादा लाज को मत खोना,
जीजा माँ,लक्ष्मी,अहल्या,दुर्गा भारत की खान से॥