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गणपति आओ मोरे अँगना

निर्मल कुमार शर्मा  ‘निर्मल’
जयपुर (राजस्थान)
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श्री गणेश चतुर्थी स्पर्धा विशेष…..
 

हे गणनायक,प्रथम पूज्य,गौरी-शंकर के लाला,
तुन बिन सफल ना कारज मोरे,कृपा करो सूंडाला
गणपति आओ, पधारो मोरे आँगन में,
गणपति आओ,बिराजो मोरे आँगन में।

माँ गौरा ने,बाल्यकाल में,द्वार पे तुम्हें बिठाया,
प्रवेश निषिद्ध बिना अनुमति के’तुमको ये समझाया
रोक द्वार पर शंकर जी को,माँ का वचन निभाया,
कर्तव्य तुम्हारा,भूल पिता की,अपना शीश गँवाया।
गणपति आओ,पधारो मोरे आँगन में…
गणपति आओ,बिराजो मोरे आँगन में॥

सत्य जान कर माँ गौरा से,शिवशंकर पछताए,
घूम लिये सर्वत्र,किन्तु वो,शीश ढूँढ ना पाए
श्री हरि थे साथ,शम्भु,आनन गज का ले आए,
धड़ पर धारण कर अपने,तुम गजानन कहलाए।
गणपति आओ,पधारो मोरे आँगन में…
गणपति आओ,बिराजो मोरे आँगन में॥

तुम मूषक के असवार,षडानन करे मयूर सवारी,
बुद्धि-विवेक से विजयी भये,महिमा बड़ी निराली
मातु-पिता के प्रति जो तुमने,श्रद्धाभाव दिखाया,
आशीर्वाद मिला उनका और प्रथम पूज्य पद पाया।
गणपति आओ,पधारो मोरे आँगन में…
गणपति आओ,बिराजो मोरे आँगन में॥

रिद्धि-सिद्धि संग आन बिराजो,सफल होय सब काजा,
हों सफल मनोरथ,विघ्न दूर,जब करे कृपा गणराजा
भाव-सिक्त अरजी,मेरी भी,सुन लो कृपा निधाना,
स्वीकार करो आमंत्रण मेरा,माँ रिद्धि-सिद्धि संग लाना।
गणपति आओ,पधारो मोरे आँगन में…,
गणपति आओ,बिराजो मोरे आँगन में…॥

परिचय–निर्मल कुमार शर्मा का वर्तमान निवास जयपुर (राजस्थान)और स्थाई बीकानेर (राजस्थान) में है। साहित्यिक उपनाम से चर्चित ‘निर्मल’ का जन्म १२ सितम्बर १९६४ एवं जन्म स्थान बीकानेर(राजस्थान) है। आपने स्नातक तक की शिक्षा (सिविल अभियांत्रिकी) प्राप्त की है। कार्य क्षेत्र-उत्तर पश्चिम रेलवे(उप मुख्य अभियंता) है।सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आपकी साहित्यिक व सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भागीदारी है। हिंदी, अंग्रेजी,राजस्थानी और उर्दू (लिपि नहीं)भाषा ज्ञान रखने वाले निर्मल शर्मा के नाम प्रकाशन में जान्ह्वी(हिंदी काव्य संग्रह) और निरमल वाणी (राजस्थानी काव्य संग्रह)है। प्राप्त सम्मान में रेल मंत्रालय द्वारा मैथिली शरण गुप्त पुरस्कार प्रमुख है। आप ब्लॉग पर भी लिखते हैं। विशेष उपलब्धि में  स्काउटिंग में राष्ट्रपति से पुरस्कार प्राप्त ‘विजय रत्न’ पुरस्कार,रेलवे का सर्वोच्च राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त, दूरदर्शन पर सीधे प्रसारण में सृजन के संबंध में साक्षात्कार,स्व रचित-संगीतबद्ध व स्वयं के गाये भजनों का संस्कार व सत्संग चैनल से प्रसारण है। स्थानीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन होता रहता है। लेखनी का उद्देश्य- साहित्य व समाज सेवा है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-प्रकृति व समाज है। विशेषज्ञता में स्वयं को विद्यार्थी मानने वाले श्री शर्मा की रूचि-लेखन,गायन तथा समाज सेवा में है।

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