विजय लक्ष्मी राय ‘विजया’
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काव्य संग्रह हम और तुम से

सफर जिंदगी का होगा इतना आसां सोचा ना था,
यूँ ही मिलोगे तुम औ दिल खो जाएगा सोचा ना था।
निहारोगे इस कदर मोहब्बत से कि हम डूब ही जाएँ,
कि चाहत का सिला होगा इतना प्यारा सोचा ना था।
मुरीद हैं आशिकी के तुम्हारी पर कम नहीं चाहत हमारी,
ख्वाब-सा आ मिले हो आश्ना तुम-सा होगा सोचा ना था।
ख्वाहिशों के लगा पर उड़ने लगी सातवें आसमां तक,
मिलेगा मेरी परवाज को यूँ ऊंचा मकां सोचा ना था।
जमीं पर सितारे उगा कर मुझको चाँद- सा बनाकर,
दिल के आँगन में अपने लोगे यूँ सजा सोचा ना था।
तेरे शामिल होने से राहें जिंदगी की मुस्कुराने लगी,
हाय सबब पूछेंगे सब मेरे मुस्कुराने का सोचा ना था।
‘विजया’ वाजिब सी वजह मिल गई जिंदगी के सफर को,
इतने अरमां से सजेगा जहां भी हमारा सोचा ना था॥