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होली

डॉ. आशा मिश्रा ‘आस’
मुंबई (महाराष्ट्र)
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फागुन संग-जीवन रंग (होली) स्पर्धा विशेष…

कैसी होली…कैसा रंग…कैसा गुलाल…
सरहद पर रंग गया…अपने ही लहू से किसी का लाल।

ज़मीन-आसमान को…रंगों से रंगने की,
नाकाम कोशिश में लगे लोग……
कहीं लाल,कहीं हरा,कहीं नीला,कहीं गुलाबी और,
कई जगह काला रंग भरने लगे लोग…।
सड़कों पर,गलियों में…बेमक़सद,बेवजह,
लाल रंग…बहाते हुए बेहया,बेशरम लोग…
जानकर भी,अपनी पहचान छुपा रहे थे लोग…।
अनजाने में,ख़ुद की पहचान बना रहे थे लोग…
चेहरे पे रंग ओढ़ कर,ख़ुद अपना रंग दिखा रहे थे लोग…॥
कैसी होली…सरहद पर…

गली के मोड़ पर,एक घर…अनजान था इन रंगों से,
आँगन में…टूटी चारपाई पर,लाचार बूढ़ी आँखों में।
अब एक ही रंग था सफ़ेद…
पुतलियाँ भी सफ़ेद हो चुकी थीं…
आँसूओं का रंग,आँखों पर चढ़ गया था…
तिरंगे में लिपटा बेटा…जब घर आया था,
वही आख़िरी बार इसने रंगों को आँखों से छुआ था…॥
कैसी होली…सरहद पर…

केसरिया रंग,जो सजता था बहू की माँग में,
संदेशा आते ही…फैल गया था सर से लेकर चेहरे तक।
जैसे अभी-अभी..किसी ने रंगों पर पानी फेंक दिया हो,
अब रंग…सिर्फ़ आँखों के कोने में नज़र आता है।
सुर्ख़ लाल….आँखों से रोज़ धोने की कोशिश…
उस कोशिश का अंजाम,सुबह और गाढ़ा हो जाता था।
मगर…फ़र्क़ नहीं रह जाता था,काले और लाल रंगों में…॥
कैसी होली…सरहद पर…

धुल रहा था सब कुछ अश्क़ों में…मगर यादों का क्या…
उन वादों का क्या,जो पिछली बार किया था…।
उसे झूठ कैसे मान ले…उन क़समों का क्या…
जो साथ जीने-मरने की खाई थी…।
क्या नाम रखे,उस बेनाम का…
जो अभी तक अनजान है,बेज़ुबान है…
पिछली चिट्ठी तक,तो तय नहीं हो पाया था,
अब इतनी आसानी से…कैसे तय हो गया,
उसका दिया नाम…॥
कैसी होली…सरहद पर…

अब बहस कैसी…और किससे,
जो कहोगे मान लेंगे…
बस एक बार कह कर तो देखो…
चीख़-चीख़ कर आवाज़ दी…
दूर-दूर तक सबने सुनी…
मगर वो सुन नहीं पाया…..
ख़ामोश हो गई अब…..
उसके चेहरे पर,एक रंग था फक्र का…..
उसे नाज़ था,अपनों के बलिदान का…..
बेटा बनेगा बाप जैसा…..
इस बात का अभिमान था…।
कैसी होली…सरहद पर…॥

परिचय-डॉ. आशा वीरेंद्र कुमार मिश्रा का साहित्यिक उपनाम ‘आस’ है। १९६२ में २७ फरवरी को वाराणसी में जन्म हुआ है। वर्तमान में आपका स्थाई निवास मुम्बई (महाराष्ट्र)में है। हिंदी,मराठी, अंग्रेज़ी भाषा की जानकार डॉ. मिश्रा ने एम.ए., एम.एड. सहित पीएच.-डी.(शिक्षा)की शिक्षा हासिल की है। आप सेवानिवृत्त प्रधानाध्यापिका होकर सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत बालिका, महिला शिक्षण,स्वास्थ्य शिविर के आयोजन में सक्रियता से कार्यरत हैं। इनकी लेखन विधा-गीत, ग़ज़ल,कविता एवं लेख है। कई समाचार पत्र में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। सम्मान-पुरस्कार में आपके खाते में राष्ट्रपति पुरस्कार(२०१२),महापौर पुरस्कार(२००५-बृहन्मुम्बई महानगर पालिका) सहित शिक्षण क्षेत्र में निबंध,वक्तृत्व, गायन,वाद-विवाद आदि अनेक क्षेत्रों में विभिन्न पुरस्कार दर्ज हैं। ‘आस’ की विशेष उपलब्धि-पाठ्य पुस्तक मंडल बालभारती (पुणे) महाराष्ट्र में अभ्यास क्रम सदस्य होना है। लेखनी का उद्देश्य-अपने विचारों से लोगों को अवगत कराना,वर्तमान विषयों की जानकारी देना,कल्पना शक्ति का विकास करना है। इनके पसंदीदा हिन्दी लेखक-प्रेमचंद जी हैं।
प्रेरणापुंज-स्वप्रेरित हैं,तो विशेषज्ञता-शोध कार्य की है। डॉ. मिश्रा का जीवन लक्ष्य-लोगों को सही कार्य करने के लिए प्रेरित करना,महिला शिक्षण पर विशेष बल,ज्ञानवर्धक जानकारियों का प्रसार व जिज्ञासु प्रवृत्ति को बढ़ावा देना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-‘हिंदी भाषा सहज,सरल व अपनत्व से भरी हुई भाषा है।’

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