बोधन राम निषाद ‘राज’
कबीरधाम (छत्तीसगढ़)
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फागुन संग-जीवन रंग (होली) स्पर्धा विशेष…
होली के त्यौहार में,देखो बिखरे रंग।
जगह-जगह पर धूम है,गले मिले हैं संग॥
नीली-पीली लालिमा,रंगों की बरसात।
जमीं आसमां लाल है,दिल तो है आघात॥
वन भी दुल्हन सा सजा,ढाँक हुए हैं लाल।
कली-कली में फूल है,बिखरे रंग कमाल॥
उड़ती देखो तितलियाँ,फूलों की हैं चाह।
बिखरी हैं रंगीनियाँ,है किसको परवाह॥
सभी जगह बिखरे हुए,कितने प्यारे रंग।
आज खुशी में नाचते,मेरे सारे अंग॥
होली की हुड़दंग में,डूब न जाना यार।
मजे-मजे से आप भी,खूब मना त्यौहार॥
भूल गिले-शिकवे सभी,रंग प्यार का खेल।
दुश्मन से भी प्रेम से,कर लेना जी मेल॥
होली का त्यौहार है,गूँज रहे हैं फाग।
ढोल नगारा संग में,छेड़ रहे हैं राग॥
देख हवा मदमस्त है,छायी रूत खुमार।
मौसम खिला बसन्त का,उड़े रंग है चार॥
नीले-पीले जामुनी,देखो चमके गाल।
सबका मुखड़ा है हुआ,रंगों में जी लाल॥
पावन बेला में मची,होली की यह धूम।
कोई मिलते हैं गले, कोई माथा चूम॥
रंगों का त्यौहार यह,मन में छाय उमंग।
आव मनायें प्रेम से,मिल करके सब संग॥