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होली जल गई

तारा प्रजापत ‘प्रीत’
रातानाड़ा(राजस्थान) 
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फागुन संग-जीवन रंग (होली) स्पर्धा विशेष…

होली से पहले ही,
होली जल गई।

किसी का समान जला
तो किसी की दुकान,
किसी का मकान तो
किसी की खोली जल गई।
होली से पहले ही,
होली जल गई…॥

माँ की ममता जली
बहन की राखी जली,
मांग के सिंदूर के संग
दुल्हन की डोली जल गई।
होली से पहले ही,
होली जल गईं…॥

आग में नफ़रत की
शराफ़त जल गई,
उधर मुसलमान तो
इधर हिंदुओं की,
टोली जल गई।
होली से पहले ही,
होली जल गई…॥

बन गई बंदूकें है पिचकारियां,
होली खेली जा रही
है खून की,
सात रंगों की
रंगोली जल गई।
होली से पहले ही,
होली जल गई…॥

नाम पे मज़हब के
झगड़े कब तलक ?
कब तलक निकलेगा,
जनाजा इंसानियत का ?
राजनेताओं की लगाई आग में,
जनता भोली जल गई।
होली से पहले ही,
होली जल गई…॥

अधर्म की जला कर होलिका
है बचाना धर्म के प्रह्लाद को,
दर्द की कराह में
प्रीत की बोली जल गई।
होली से पहले ही,
होली जल गई॥

परिचय– श्रीमती तारा प्रजापत का उपनाम ‘प्रीत’ है।आपका नाता राज्य राजस्थान के जोधपुर स्थित रातानाड़ा स्थित गायत्री विहार से है। जन्मतिथि १ जून १९५७ और जन्म स्थान-बीकानेर (राज.) ही है। स्नातक(बी.ए.) तक शिक्षित प्रीत का कार्यक्षेत्र-गृहस्थी है। कई पत्रिकाओं और दो पुस्तकों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं,तो अन्य माध्यमों में भी प्रसारित हैं। आपके लेखन का उद्देश्य पसंद का आम करना है। लेखन विधा में कविता,हाइकु,मुक्तक,ग़ज़ल रचती हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-आकाशवाणी पर कविताओं का प्रसारण होना है।

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