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कितना करूँ इतंजार कान्हा…!

डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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मंद-मंद जब चलती हवाएं,
चाँद बादलों से मुस्कुराए
जहाँ-जहाँ मेरी पड़ें निग़ाहें,
कान्हा ही कान्हा नजर आएं।
आखिर कैसा प्यार ये कान्हा,
कितना करूँ इतंजार कान्हा…!!

रहती हूँ सारा दिन गुमसुम,
स्मृतियों में बसते हो बस तुम
शाम हुई और श्याम न आते,
हो जाते किन गलियों में गुम।
तुम जीवन का सार कान्हा,
कितना करूँ इतंजार कान्हा…!!

मौन हो गई बंसी की धुन,
जीती थी साँसें जिनको सुन
जीवन अब निष्प्राण हो गया,
क्या गोकुल और क्या वृंदावन।
अश्रु की बह रही धार कान्हा,
कितना करूँ इतंजार कान्हा…!!

मृगों ने वन में विचरण छोड़ा,
मोर ने मुख नर्तन से मोड़ा
विलुप्त हो चुकी सृष्टि सारी,
ह्रदय ने स्पंदन से नाता तोड़ा।
कुछ भी नहीं स्वीकार कान्हा,
कितना करूँ इतंजार कान्हा…!!

तुम सपनों में भी क्यूँ आ जाते,
तुम अँखियों में क्यूँ छा जाते
विरह की पीड़ा को तो समझो,
मुझको क्यों इतना हो सताते।
अब जीना भी दुश्वार है कान्हा,
कितना करूँ इतंजार कान्हा…!!

परिचय–डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी ने एम.एस-सी. सहित डी.एस-सी. एवं पी-एच.डी. की उपाधि हासिल की है। आपकी जन्म तारीख २५ अक्टूबर १९५८ है। अनेक वैज्ञानिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित डॉ. बाजपेयी का स्थाई बसेरा जबलपुर (मप्र) में बसेरा है। आपको हिंदी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। इनका कार्यक्षेत्र-शासकीय विज्ञान महाविद्यालय (जबलपुर) में नौकरी (प्राध्यापक) है। इनकी लेखन विधा-काव्य और आलेख है।

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