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हूक

डॉ. पंकज वासिनी
पटना (बिहार)
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काव्य संग्रह हम और तुम से


हम
बता नहीं सकते,
कितना अच्छा लगता था…
तेरा आँखों से छूना…l
लम्हा-दर-लम्हा…
चुपचाप…सस्मित…!
और,
रोम-रोम मेरा पुलकित…l
हृदय-वीणा पर,
बज उठता मालकौश…!
मन-मयूर नर्तित…,
स्वप्न-अंजित-नयन सस्मित…l
अरुण-मुख लाज-नत…
और रुक जाते थे,
हाथ मेरे
कभी रोटियाँ बेलते…,
कभी अम्मा के पाँव दबाते…
कभी बाबूजी को खाना परोसते…l
दरम्यां हमारे,
आज कोई नहीं
सिर्फ हवाएँ,
महत्वाकांक्षा की
करती सांय-सांय…!
एक हूक-सी,
उठती है अंतस में
फिर इक बार,
उन्हीं मीठी नजरों की
आत्मविभोर करती…
आह्लाद में नहलाती,
बेसुध करती…
स्नेहिल छुअन दे दो…
तुम…ll