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सृजन फिर से कर सकूं…

डॉ. विद्या ‘सौम्य’
प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)
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सृजन फिर से कर सकूं,
दो ऐसी शक्ति, हे देव।

शून्य पड़े थे,जो भाव हृदय में,
बिखरा दो पूरे, तन और मन में
वैराग्य-सा तप रहा है जीवन,
प्रेम-रस से सिंचित कर दो
जैसे शिव में लीन, हो गई शिवा,
ऐसा गौरवान्वित क्षण देदो।

सृजन फिर से कर सकूं,
दो ऐसी शक्ति, हे देव…॥

कण-कण को शब्दों से जड़ दूँ,
ऐसा साधक तन भी देदो
बांध सकूं भावों को फिर से,
ऐसा भावक मन भी दे दो
कर सकूं मैं उन्नत, मस्तक माँ का,
ऐसा विरोचित बल देदो।

सृजन फिर से कर सकूं,
दो ऐसी शक्ति, हे देव…॥

बिखरा दूँ जग का सूनापन,
महका लूँ सौरभ-सा जीवन
पर हृदय व्यथा से, न हो खाली,
ऐसी विकल रागिनी से भर दो
कर सकूं अडिग मैं, स्वर-साधना,
ऐसा गुणोचित वर देदो।

सृजन फिर से कर सकूं,
दो ऐसी शक्ति, हे देव…॥