तृषा द्विवेदी ‘मेघ’
उन्नाव(उत्तर प्रदेश)
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(रचना शिल्प:विधाता छन्द,बहर-१२२२×४,रस-वीर)
मुझे जाना शहर ये छोड़ फिर वापस नहीं आना,
लिखूँगी भाग्य मैं खुद का यही संकल्प है ठाना।
नहीं रुकना सफर चाहे मुझे तन्हा गुजरना हो,
अकेले चल अकेले ही मुझे हर लक्ष्य है पाना।
न घबराओ यूँ मुश्किल देख तुम बढ़ते चले जाओ,
हुआ वो ही सफल इंसां,न जिसने हार को माना।
छुपा लो अश्क़ आँखों के,सजा लो तुम हँसी लब पर,
तुम्हारे हौंसले ही तो लिखेंगे एक अफसाना।
जहाँ में तोड़ने का काम सारे लोग करते हैं,
करें कमजोर ऐसी सोच मन में तुम नहीं लाना।
नहीं कोई अगर जो संग तो अफसोस ना करना,
बनो तुम मीत खुद के ही कभी धोखा नहीं खाना।
तृषा
जिस लक्ष्य की हासिल उसे ऐ मेघ तुम करना,
हमारा नाम इस जग में रहेगा फिर न अनजानाll