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लघुकथा लेखन को आसान समझना बहुत बड़ी भूल-लक्ष्मी शंकर वाजपेयी

लोकार्पण…..

गुरुग्राम(हरियाणा)।

लघुकथा लेखन को आसान समझना बहुत बड़ी भूल होगी। लघुकथा आज लोकप्रिय व स्थापित विधा है और किसी भी घटना को संवेदनशीलता से लघुकथा में बदलना चाहिए। एक समय महाकाव्य लिखे और पढ़े जाते थे। अब इनका स्थान क्षणिका ने ले लिया। उपन्यास का स्थान लघुकथा ने ले लिया है।
यह कहना है ‘साहित्य अमृत’ के सम्पादक लक्ष्मी शंकर वाजपेयी का। आप गुरुग्राम के सी. सी.ए. विद्यालय में शब्द शक्ति संस्था द्वारा आयोजित कार्यक्रम में चर्चित लघुकथाकार कमलेश भारतीय के नवप्रकाशित लघुकथा संग्रह ‘मैं नहीं जानता’ व डायमंड बुक्स की पत्रिका साहित्य विमर्श के लघुकथा विशेषांक के विमोचन अवसर पर संबोधित कर रहे थे। विशेषांक के सम्पादक और शब्द शक्ति के संचालक नरेंद्र गौड़ ने कार्यक्रम का संचालन किया। विमोचन विद्यालय की प्राचार्य निर्मल यादव,लक्ष्मी शंकर वाजपेयी,मुकेश शर्मा, मुख्य वक्ता रश्मि और लघुकथाकार मुकेश शर्मा ने किया।
मुख्य वक्ता रश्मि ने कहा कि लघुकथा आज सबसे ज्यादा पढ़ी जाने वाली विधा बन गई है। कमलेश भारतीय की लघुकथा प्रक्रिया पर कहा कि छोटी-सी बात को लघुकथा में बदल देने की जादूगरी इनकी लघुकथाओं में देखने को मिलती है।
चर्चित लघुकथाकार मुकेश शर्मा ने विशिष्ट अतिथि के रूप में कहा कि क्या लघुकथा का कोई किरदार याद रह पाएगा ? यह बड़ी चुनौती है। लघुकथा में कथानक नहीं,कथ्य प्रमुख भूमिका निभाता है। लघुकथा के नियमों व मानकों पर मुकेश ने कहा कि एक बार लघुकथा के दरवाजे,खिड़कियां खोल दीजिए और इसे खुली हवा में फलने-फूलने दीजिए।
रचनाकार कमलेश भारतीय ने अपनी पचास वर्ष की लघुकथा यात्रा की कुछ महत्वपूर्ण उड़ानों का जिक्र किया और कहा कि इसे मठाधीशों से बचाने की जरूरत है। आपने चुनिंदा लघुकथाओं का पाठ भी किया।
कार्यक्रम की शुरूआत संस्कृति की सरस्वती वंदना से तो समापन ग़ज़ल से हुआ। श्री वाजपेयी ने भी सुर में एक गीत सुना कर माहौल को आनंदमय कर दिया। समारोह में घमंडी लाल अग्रवाल,मोनिका शर्मा,सविता इंद्र गुप्ता,सविता स्याल,हरेंद्र यादव और नीलम भारती आदि मौजूद थे। सभी का धन्यवाद प्राचार्या श्रीमती यादव ने व्यक्त किया।

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