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कर्म और भाग्य

डीजेंद्र कुर्रे ‘कोहिनूर’ 
बलौदा बाजार(छत्तीसगढ़)
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प्रकृति और मानव स्पर्धा विशेष……..


सारी सुख-संपत्ति के साधन धरती
सतत श्रम करो भुज-बल से,
भाग्य के सहारे न जी तू मानव-
भोगता रह जाएगा भाग्य के छल से।
धरती की इस मिट्टी को कर दे उलट-पलट
सींच-सींच कर नम कर दे जल से,
न बन तू आलसी रे मानव-
भोगता रह जाएगा भाग्य के छल सेll

ब्रह्मा-विष्णु-महेश नहीं देंगे तुझे सहारा
बल दे तू कर्म प्रधानता से,
प्रकृति नहीं डरकर झुकती है-
कभी भाग्य के बल से।
पढ़ निरन्तर गढ़ सत्य को
संवरेगा जीवन शिक्षा से,
धार्मिकता को हटा दे मन से-
भोगता रह जाएगा भाग्य के छल सेll

परिचय-डीजेंद्र कुर्रे का निवास पीपरभौना बलौदाबाजार(छत्तीसगढ़) में है। इनका साहित्यिक उपनाम ‘कोहिनूर’ है। जन्मतारीख ५ सितम्बर १९८४ एवं जन्म स्थान भटगांव (छत्तीसगढ़) है। श्री कुर्रे की शिक्षा बीएससी (जीवविज्ञान) एवं एम.ए.(संस्कृत,समाजशास्त्र, हिंदी साहित्य)है। कार्यक्षेत्र में बतौर शिक्षक कार्यरत हैं। आपकी लेखन विधा कविता,गीत, कहानी,मुक्तक,ग़ज़ल आदि है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत योग,कराटे एवं कई साहित्यिक संस्थाओं में भी पदाधिकारी हैं। डीजेंद्र कुर्रे की रचनाएँ काव्य संग्रह एवं कई पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित है। विशेष उपलब्धि कोटा(राजस्थान) में द्वितीय स्थान पाना तथा युवा कलमकार की खोज मंच से भी सम्मानित होना है। इनके लेखन का मुख्य उद्देश्य समाज में फैली कुरीतियां,आडंबर,गरीबी,नशा पान, अशिक्षा आदि से समाज को रूबरू कराकर जागृत करना है।