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आइए,चलते हैं ‘गुलाबी नगर’ की सैर पर

डॉ.प्रभात कुमार सिंघल
कोटा(राजस्थान)
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विश्व प्रसिद्ध राजस्थान का ‘गुलाबी नगर’ जयपुर मेरा पसंदीदा शहर है। सौभाग्य है कि वर्षों मुझे यहाँ रहने का अवसर प्राप्त हुआ। बहुत करीब से देखा-जाना है शहर को-यहाँ की जीवन-शैली,परम्पराओं और संस्कृति को। गुलाबी रंग की रंगत लिए जयपुर की
चारदिवारी वाला प्रसिद्ध गुलाबी नगर,इसका कलात्मक परकोटा,गुलाबी इमारतें-महल, कला-सांस्कृतिक परम्पराएं,उत्सव,हस्तशिल्प सभी कुछ अंतरराष्ट्रीय पटल पर अपना खास महत्व रखते हैं। भारत आने वाले हर पर्यटक की ख्वाइश होती है गुलाबी नगर को देखना। यह देश के लिए गर्व का विषय है कि इस नियोजित शहर को इसकी एतिहासिक और सांस्कृतिक वजह से यूनेस्को में वर्ष २०२० में ‘विश्व धरोहर’ का खिताब दिया गया। सम्पूर्ण भारत और यूरोप में अपने ढंग का अनूठा नगर है,जिसकी समकालीन और वर्तमान विदेशी यात्रियों ने मुक्तकण्ठ से प्रशंसा की है। इस नगर का गुलाबी रंग सदियों से आज भी जयपुर को गुलाबी नगर के नाम से ख्याति दिला रहा है।
देश के उत्तर-पश्चिमी राज्य राजस्थान के परकोटे वाले जयपुर नगर की स्थापना वर्ष १७२७ ई. में सवाई जय सिंह द्वितीय द्वारा की गई थी। एक स्वप्निल योजना को मूर्त रूप देते हुए नवग्रहों का प्रतिनिधित्व करने वाले वास्तु पुरूष मंडल के प्रतीक को धरातल पर आकार दिया गया। नव स्थापित राजधानी जयपुर के शिल्प और विज्ञान का महत्वपूर्ण केन्द्र बनने के कारण से पुरानी राजधानी आमेर का गौरव कम हो गया। जयपुर के बसने से पूर्व आमेर कछवाहा राजाओं की राजधानी था। परकोटे वाले जयपुर नगर की सुरक्षा प्राचीरें आमेर से जा मिलती हैं। यद्यपि,दोनों राजधानियों के मध्य करीब १३ किमी. की दूरी है,परन्तु प्राचीरों के कारण दोनों एक ही इकाई प्रतीत होती है। भारत में जयपुर ही एकमात्र ऐसा नगर है,जो योजनानुसार वैज्ञानिक पद्वति के आधार पर बसाया गया है। सभी सड़कों और गलियां सीधी रेखा में समकोण बनाती हुई एक-दूसरे को काटती हुई आगे बढ़ती हैं। राजस्थान के नगरों के प्रतिरक्षामूलक स्वरूप के दृष्टिगत उन्हें दुर्ग-नगर की संज्ञा देना उचित होगा। किला,तालाब और बाजार चौक,ये जगहें राजस्थानी नगर के सरंचनात्मक प्रमुख अंग थे।
शिल्पशास्त्र के मर्मज्ञ बंगाली विद्याधर चक्रवर्ती की जयपुर नगर के नियोजित निर्माण और वैज्ञानिक संकल्पना में मुख्य भूमिका रही। सवाई जयसिंह की ज्योतिष तथा इतिहास सम्बन्धी अभिरूचियों में दीवान विद्याधर प्रधान सहयोगी थे। विद्याधर की देख-रेख में वास्तुविदों ने नक्शे के आधार पर शहर निर्माण की समस्त कल्पना को मूर्त रूप प्रदान किया। उसकी सहायता से ही उसने चौरस आकार की सीधी सड़कें और गलियों वाली बस्ती बसाना आरम्भ किया,जो जयपुर के नाम से विख्यात है।
सवाई जयसिंह के घासीराम मुरलीधर नामक व्यापारी को लिखे पत्र से उजागर होता है कि,ऐसा नगर योजना में राज्य के नियंत्रण को कायम रखने और भवनों की ऊंचाई और निर्माण के प्रकार की एकरूपता को सुनिश्चित करने के लिए किया गया था। जयसिंह ने व्यापारी को पत्र में विद्याधर के निर्देशों के अनुसार कार्य करने की बात कही है। जयपुर में आज भी विद्याधर का रास्ता,विद्याधर कॉलोनी और आगरा रोड पर विद्याधर जी का बाग है,जिसे महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय द्वारा जयपुर के वास्तुविद की स्मृति में बनाया दिखाई देता है।
निर्विवाद रूप से जयपुर एक अभिजात्य नगरीय जीवन वाला शहर है। नगर योजना और समृद्ध वास्तुकला जयपुर की महत्वपूर्ण विशेषताएं हैं। जयपुर की शहरी आयोजना में प्राचीन हिंदू,प्रारंभिक आधुनिक मुगल काल और पश्चिमी संस्कृतियों के विचारों का प्रभाव दिखाई देता है। इसे वैदिक वास्तुकला में वर्णित व्याख्या के आधार पर ग्रिड योजना के अनुरूप बनाया गया था। ग्रिड योजना के मॉडल की पश्चिम में अधिक स्वीकार्य उपस्थिति है, जबकि शहर के विभिन्न क्षेत्रों (चौकड़ियों) की व्यवस्था से पारंपरिक हिंदू अवधारणाओं के संदर्भ का आभास होता है। अपना पुराना रूप नगर-प्राचीर से घिरे मध्यभाग ने ही सुरक्षित रखा है। यहां इमारतें वैसी ही सुंदर और शानदार हैं,और सड़कें भी आधुनिक जीवन की जरूरतों के दबाव को झेलती हुई वैसी ही खुली-खुली और चौड़ी लगती हैं।
नगर के परकोटे वाला भाग जीवंत विरासत वाले शहर जयपुर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। परकोटे की दीवार का नगर की सीमाओं को परिभाषित करने और एक प्रकार की व्यवस्था की भावना को स्थापित करने के उद्देश्य से निर्माण किया गया था। सड़कों में कार्यात्मक और बहुआयामी विविधताएं परिलक्षित होती हैं। जयपुर की चौड़ी और सीधी सड़कें आधुनिक परिवहन की अपेक्षाओं के भी पूर्णतः अनुरूप हैं। जब हम जयपुर की सड़कों और लंबे-चौड़े चौकों से गुजरते हैं,बाहर की सीढ़ियों के जरिए घरों की चौरस,खुली छतों से उतरते हैं और अलंकृत ड्योढ़ियों से भीतरी अहातों को झांकते हैं,तो विस्तार का आभास होता है। बरामदों की स्तंभ-पंक्तियां और अन्य वास्तु-रचनाओं तथा अंगों की एकरूपता सड़क को व्यवस्थित स्वरूप प्रदान करती है। जयपुर,निर्माताओं की भव्य कल्पना तथा कला-कौशल की शानदार मिसाल है। छतरी (गुंबदयुक्त मंडप) और बंगलादार (नुकीले किनारों वाली ढलवां छत के आकार का सजावटी शिखर,जिसका अनुकरण बंगाली लोक वास्तुशिल्प से किया गया था) विभिन्न संयोजनों में हर कहीं दोहराए गए हैं। उनका लयात्मक विन्यास सड़क की आकाशरेखा को अत्यंत नयानाभिराम बना देता है। जयपुर में भवनों के सड़क की ओर अग्र भाग अपने कलात्मक अलंकरणों की बाहुल्यता से आश्चर्यचकित करने वाला है। जयपुर में सड़क आखिर में जाकर किसी महल अथवा बड़ी इमारत से अवरूद्व नहीं होती है,यहां बुर्जनुमा दरवाजे बताते हैं कि भीतर कोई महत्वपूर्ण इमारत है। यह नगर सुरक्षा की दृष्टि की अपेक्षा विभिन्न प्रकार के व्यापार,कला और शिल्प में लगे विभिन्न समुदायों के लिए एक बसावट के रूप में बनाया गया था।
जयपुर की मूल योजना के अनुसार केवल ४ आयताकार खंड थे,जिसमें आज महल,पुरानी बस्ती,तोपखानी देश और मोदीखाना और विश्वेश्वरजी हैं।
नगर की अधिकांश इमारतें जिस गुलाबी बलुए पत्थर से बनी हैं,उन पत्थरों की खूब टिकाऊ गारे के साथ चुनाई होने से बाहर पलस्तर की जरूरत नहीं है। बाद में जो इमारतें ईंटों से बनायी गयी,उनके पलस्तर पर भी गुलाबी रंग का ही लेप है।
जयपुर में प्रवेश-द्वार के प्रति परंपरागत रवैया अपने चरम रूप में सामने आता है। प्रक्षेपों तथा देवलियों से युक्त शानदार नगर-द्वार महीन नक्काशियों,मूर्ति-अलंकरणों तथा चित्रकारी से सजे हुए हैं। द्वार के मध्य भाग में ऊपर दंतीली,नोंकदार तथा अन्य किसी आकृति की मेहराब और शिखर पर गुंबदाकार छतरी बनी होती है,जो उसकी रचना को बहुत ही अभिव्यक्तिपूर्ण बना देती है। जयपुर में ६ नगर-द्वार हैं और हर द्वार आकृति और सज्जा में दूसरे से भिन्न है। यहां कोई भी प्रवेश द्वार अलक्षित नहीं रहता। सबके प्रवेश-स्थल पर अलंकृत सिंह-द्वार बने हुए हैं।
जलेबी चौक जयपुर का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण चौक है,जो चारों ओर से इमारतों से घिरा हुआ है और उसके २ कार्य थे-विशेष दिनों पर महाराजा की सवारी निकलती थी,सैनिक परेड होती थीं और तमाशे,नाटक आदि आयोजित होते थे। जब सवारी निकलती थी,चौक में संगीत गूंजता था। जलेबी चौक से प्रासाद की मुख्य इमारतों तक ४ दरवाजे हैं। एक मुख्य इमारत दीवाने आम है,जो चारों ओर से खुले बहुस्तंभी मंडप जैसा है। उनके मध्य में स्थित सिंहासन पर बैठकर महाराजा जनता को दर्शन देता था। राजप्रासाद का वास्तु-स्वरूप और अभिन्यास स्वाभाविकतः उसके निर्माता की रूचियों और रूझानों को प्रतिबिंबित करते हैं।
देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने जयपुर को ऐसा सुनियोजित और सुअभिन्यस्त नगर कहा था,जो नगर-आयोजना का प्रतिमान बन सकता है।
जयपुर भारत का एक ऐसा शहर है, जिसने भविष्य की आवश्यकताओं का प्रावधान रखते हुए परम्परा के सकारात्मक मूल्यों को कायम रखा है। परकोटे वाला जयपुर नगर अपनी भौतिक विशेषता को कायम रखते हुए अभी भी एक सम्पन्न आर्थिक केन्द्र है। परकोटे में स्थित जंतर-मंतर पहले से ही विश्व विरासत निधियों में शामिल है। हवामहल,सिटी पैलेस,सरगासूली,गोविन्ददेव मंदिर और कारीगरी पूर्ण छतरियां परकोटे के भीतर महत्वपूर्ण स्मारक एवं धार्मिक स्थल हैं। आस-पास जयगढ़ का किला,आमेर के महल,नाहरगढ़,गलता जी,लक्ष्मी नारायण मंदिर,गढ़ गणेश जी,मोती डूंगरी के गणेश जी,खोले के हनुमान जी,अल्बर्ट हॉल संग्रहालय आदि प्रमुख रूप से दर्शनीय स्थल हैं। ब्ल्यू पॉटरी, लाख के चूड़े,मोजड़ी, सांगानेर-बगरू प्रिंट के वस्त्र,लहरिया साड़ी आदि मुख्य हस्तशिल्प हैं। मेट्रो ट्रेन आधुनिक जयपुर की विशेषता बन गई है।

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