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पहुँच जाने दो हमें गाँव

दीपक शर्मा

जौनपुर(उत्तर प्रदेश)

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हम सड़कों पर
सैर करने नहीं निकले हैं साहब,
हम गाँव जाना चाहते हैं
मेरी पत्नी के पेट में,
बहुत दर्द है
उसे थोड़ा विश्राम चाहिए।
मेरा शिशु भूखा है बहुत,
उसकी माँ के स्तन में
दूध नहीं बचा है,
चलते-चलते मांसपेशियां छिल गयी है।
पड़ गए हैं पैरों में छाले,
धूप से चेहरे हो गए हैं काले
जल गया है देह का खून,
हड्डियों की बदौलत
खींच रहे हैं हम धरती।

लाठियाँ रख दो साहब,
यही तो बचा है मेरे पास
बस आदमी जिंदा है।
खींच लो मेरी तस्वीर,
अच्छी तो नहीं आएगी
लेकिन अच्छा जरूर लगेगा,
क्योंकि इससे आपकी खबरें
चमकेंगी।

कहते हो रुक जाएं यहीं ?
रुके तो थे दो महीना,
क्या मिला ?
कमाया जितना,
वह भी सफा हो गया।
कितने दिन दिया हमें खाना ?
कितने दिन दिया हमें पानी ?
बस सोते रहे हम,
आसमान की छत ओढ़कर जमीन पर।
जाने दीजिए साहब,
पहुँच जाएंगे हम
कुछ दिनों में अपने गाँव।
हुक्मरान मेरी सुने न सुने,
लेकिन मेरे पड़ोसी
मुझे दो रोटी देने में,
संकोच नहीं करेंगें।

“किराया नहीं लिया जाएगा,
मजदूरी मिलती रहेगी
दवा पहुँचती रहेगी…”
रहने दो साहब,
आपकी केवल एक बात मानेंगे-
‘आत्मनिर्भर’ बनेंगे
आत्मनिर्भर ही बनेंगे।
बस किसी तरह,
पहुँच जाएं अपने गाँव।

‘तालाबंदी’ २ प्वाइंट जीरो,
तालाबंदी’ ३ प्वाइंट जीरो
तालाबंदी’ ४ प्वाइंट जीरो,
टेलीविजन की ये बहस…
सबसे अश्लील चित्र लगने लगी है।

इस बार,
मुनिया के लिए
खिलौना नहीं खरीद पाए।
न ही खरीद पाए,
पिता के लिए चप्पल…
माँ के लिए साड़ी।

कल शराबी ट्रक का चालक,
पाँच सौ किमी यात्रा का
पाँच हजार माँग रहा था।
बीबी ने मंगल-सूत्र उतार दिया,
किंतु मेरा सफर
पूरा नहीं हुआ साहब…।

विशेष वाहन विशेष लोगों के लिए है,
आसमान से फूल बरसाते जहाज
मेरे घिसटते पाँवों को
चिढ़ा रहे हैं।
खिड़कियों से बजती तालियां,
मेरे कानों को बेध रही है।

मेरा वो साथी,
जो सोया था
रेल पटरियों पर,
भोर की नींद में
टुकड़ों में बँटा है।
उसकी बूढ़ी माँ,
कलेजा पीट रही होगी
और उनकी कुँवारी बहन,
उन्हीं की बदौलत
देख रही थी सुहाग के सपने।
रधवा के काका,
अधमरे पड़े हैं सड़क पर
गोद को तरसता बच्चा,
ट्राली पर ही सो गया है।

कैसे-कितना-क्या बताएं साहब…
पहुँच जाने दो बस,
हमें हमारे गाँव॥

परिचय-दीपक शर्मा का स्थाई निवास जौनपुर के ग्राम-रामपुर(पो.-जयगोपालगंज केराकत) उत्तर प्रदेश में है। आप काशी हिंदू विश्वविद्यालय से वर्ष २०१८ में परास्नातक पूर्ण करने के बाद पद्मश्री पं.बलवंत राय भट्ट भावरंग स्वर्ण पदक से नवाजे गए हैं। फिलहल विद्यालय में सहायक अध्यापक के पद पर कार्यरत हैं।आपकी जन्मतिथि २७ अप्रैल १९९१ है। बी.ए.(ऑनर्स-हिंदी साहित्य) और बी.टी.सी.( प्रतापगढ़-उ.प्र.) सहित एम.ए. तक शिक्षित (हिंदी)हैं। आपकी लेखन विधा कविता,लघुकथा,आलेख तथा समीक्षा भी है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में इनकी कविताएँ व लघुकथा प्रकाशित हैं। विश्वविद्यालय की हिंदी पत्रिका से बतौर सम्पादक भी जुड़े हैं। दीपक शर्मा की लेखनी का उद्देश्य-देश और समाज को नई दिशा देना तथा हिंदी क़ो प्रचारित करते हुए युवा रचनाकारों को साहित्य से जोड़ना है।विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा आपको लेखन के लिए सम्मानित किया जा चुका है।

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