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जीवन में रंगों संग फगुनाई

डॉ. आशा गुप्ता ‘श्रेया’
जमशेदपुर (झारखण्ड)
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फागुन संग-जीवन रंग (होली) स्पर्धा विशेष…

शीत ऋतु के बाद,जब प्रकृति अंगड़ाई लेती है,तो बसंत के बहार के साथ,प्रकृति के सुंदर उद्गार के संग जन-जन में फागुनी खुमार भी चढ़ने लगता है। जहाँ वन में पलाश अपनी नारंगी आभा से चमकता फागुन के आगमन का संदेश देता है,वहीं पुष्प झूम-झूम कर गाते हैं। डालियाँ मस्त होकर झूमती-हँसती हैं। खेतों में लहराती पीली सरसों के पुष्प, आम पर मंजर की शुरूआत,पंछियों का चहकना,सुंदर मीठी बयार…वाह ये फागुनी उमंग…-
‘झुरमुट में पक्षी संग कोयलिया करती कुहू गान,
नव किरणों संग आया है देखो फागुनी विहान।
ना ज्यादा ठंड,ना ज्यादा गर्मी की तपन.. खुशनुमा-सा मौसम फागुन।’
विश्वरागिनी देवी माँ सरस्वती और भोले बाबा देवी पार्वती के विवाह की महाशिवरात्रि के हर्षाल्लास पूजन-अर्चन से शुरू होते फाल्गुन की उमंग-तरंग,हुड़दंग के साथ आशा,विश्वास,ऊर्जा एकता के संदेश के साथ होली/फगुआ/धुलेंडी रंगों का अनुपम अद्भुत त्योहार है। सदियों से यह अनुराग की रीति से चली आ रही है।
फाल्गुन मास ही ऐसा है जो अपने मादक सौंदर्य तथा बासंती पवन से लोगों को हर्षित करता है। फागुन चढ़ते ही सभी के चेहरें पर एक रंगत-सी छा जाती है और रंगों के त्योहार होली का बेसब्री से इंतजार होने लगता है कि,कब होली आएगी और हम एक-दूसरे के संग रंगों से खेलेंगे,इसकी ललक लगी रहती है।
बचपन की होली याद है ना…? कई दिन पहले से ही हमारी माताएं-गृहिणियाँ खोया मेवा के लोभित करते गुझिए,भुजिए,नमकीन और खुरमें सब होली के लिए बनाकर रखती जाती…! आज भी हम सबकी कोशिश रहती है.. कि,ये विशेष पकवान बनाकर परिवार,संगी-साथियों संग होली खेलने की तैयारी की।
फागुन आते ही श्री कृष्ण-राधा की होली खेलने के सौंदर्य को ग्वाला समाज ढोल मृदंग,झाल संग फागुन के स्वागत में फगुआ का गीत गाते शगुन करते हैं। रात्रि में ये गीत कर्णों को कितने मधुर लगते हैं ना..। बिन राधा-कृष्णा होली कैसे हो,जरा सोचिए तो।
‘आज बिरज में होली रे रसिया…’ प्रेम के रंगों का त्योहार होली राधा-कृष्ण जी के दिव्य प्रेम का संदेश देता है। ब्रज में टेसू के फूलों की होली की परम्परा है,तो नंदगांव में लट्ठमार होली।
हमारी भारतीय संस्कृति में देश में विभिन्न त्योहारों को बड़े आनंद-हर्ष-उल्लास से मनाया जाता है। भारत के चार प्रमुख त्योहारों में होली रंगों से भरा सजा त्योहार है, और भारत के हर प्रांत-क्षेत्र में प्रेम,उमंग व सौहार्द से मनाया जाता है। यह धर्म,लिंग, जाति,उम्र से उपर सबका त्योहार है। हिन्दू पंचाग के आखिरी मास की पूर्णिमा फागुनी नक्षत्र के कारण फाल्गुन मास कहलाती है। यह त्योहार धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व रखता है। पूर्णिमा के होलिका दहन की पूजा वस्तुत: अग्नि पूजा है। हिरणकश्यप के पुत्र, प्रभु की भक्ति में सदा लीन प्रह्लाद को जलाने के लिए अग्नि में बैठी होलिका स्वयं जल कर राख हो गई,पर परमभक्त प्रह्लाद का बाल भी बाँका नहीं हुआ,तो यह अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक है।
फागुन पूर्णिमा के दिन होली पूजन का महत्व रहस्य यह भी है कि फाल्गुन के पश्चात फसल पक जाती है। इस मौके पर आग लगने से कभी गाँव-खलिहान जल जाते हैं, इसलिए होलिका पूजन द्वारा किसान अग्नि में विधिवत पकवान,जौ की बालियाँ,चने के पौधे डालकर अग्नि को प्रसन्न करते हैं,यानी प्रार्थना करते हैं कि अग्नि अवांछित ताप से मानव की रक्षा करे।
जहाँ उत्तर,पूर्व,पश्चिम और मध्य भारत में होली की उमंग-हुड़दंग रहती है तो दक्षिण भारत में फागुन में ‘उत्तिर’ नामक मंदिरोत्सव का भव्य आयोजन बड़ी धूमधाम से किया जाता है। मालपुआ की खुशबू ललचाती है, तो दहीबड़े चटकदार जिह्वा को सहलाते हैं।जहाँ अनेक पकवान मन को प्रसन्न करते हैं, वहीं गीले-सूखे लाल,पीले,हरे,नीले,नारंगी आदि रंगों से अबीर-गुलाल भी और तरह-तरह की मिठाइयाँ भी मन को भाती हैं।
बच्चों में तो अनुपम उत्साह रहता ही है,बड़ों में भी उत्साह कम नहीं होता। याद है होली में बाबूजी अपने दोस्तों संग ढोल लेकर घर पर मंडली जमा करते,और माँ ठंडाई संग पकवान परोसती। माँ की सहेलियों की मंडली भी कहाँ पीछे रहती भला! हम बच्चे भी रंग लगाते,पिचकारी से भींगते-भिगोते, मस्ती करते। रंगों से भरे चेहरे भीगें कपड़ों के साथ हाथ में पिचकारी संग हँसते बच्चे मोती से दाँत दमकाते। बड़े-बुजुर्ग भी उत्साहित रहते,उनके चरणों पर अबीर रख प्रणाम करना और सुख-सौभाग्य-प्रगति का आशीष मिलता। सखी-मित्रों को घर पर बुला कर रंग अबीर संग गले लगाते हैं। तो है ना अनुपम जीवन के विभिन्न रंगों से सजा फागुन। सारे वैर,मतभेद भूल सब रंगों भरी होली का आलिंगन करते हैं। सब फागुन का इतना सुन्दर गीत ढो़लक,झाँझ व मजीरा के साथ बड़े प्यार से गाया करते हैं-
‘मन मृदंग बजे छंद सजे,
फागुन कान्हा उमंग जगे
राधा तुझ संग सतरंग उड़े,
प्रकृति भी देखो हृदय हरसे।,
धरती भी इन रंगों में रंग जाती है तथा हमारे साथ वसुधा भी फागुन की फगुनाई में मतवाली हो जाती है। फागुन की रंगीन उमंगों को शब्दों में बाँधा नहीं जा सकता। यह एक अद्भुत अनुभव है।
विदेशों में रहने वाले भारतीय भी फागुन में रंगों का त्योहार मनाने में पीछे नहीं रहते। एक जगह एकत्रित होकर सपरिवार मित्रों संग फाग अवश्य खेलते हैं। है ना फागुन का ये खुश रंग!
इस समय ‘कोरोना’ से बचाव के लिए टीकाकरण चल रहा है और संक्रमण से अभी भी युद्ध जारी है। तो आइए ना,मन को रंगिए फाग के सुंदर रंगों से,हृदय के स्नेह उत्सव उमंगों से घर-परिवार मित्रों,सखियों और जन-जन को फगुआ की बधाईयाँ शुभकामनाएं तो दीजिए जी…! होली पर प्रसन्नतापूर्वक सुरक्षा सहित आलिंगन करें,सबको आशीष दें..हँसें फागुन के रंग, जीवन के संग…-
चहुँओर फैला उल्लास,
होली का यह है मास
फागुन आया,फागुन आया,
ढोलक-मृदंग सब रस लाया!

चली पिचकारी,हुई ठिठोली,
देखो राधा कान्हा की टोली
उर में होली,तन में होली,
जगी सबके मन में होली!

कौन धरम,कौन-सी जाति
ये सब बातें नहीं सुहाती
भाईचारा ही है बोली,
खेल होली,खेल होरी!

रंग में डूबी,घर औ आँगन,
ठुमके लगा,नीचे मनभावन
राधा की होली,कृष्णा की होली,
यह तो है जन-जन की फागुनी होली!!

परिचय- डॉ.आशा गुप्ता का लेखन में उपनाम-श्रेया है। आपकी जन्म तिथि २४ जून तथा जन्म स्थान-अहमदनगर (महाराष्ट्र)है। पितृ स्थान वाशिंदा-वाराणसी(उत्तर प्रदेश) है। वर्तमान में आप जमशेदपुर (झारखण्ड) में निवासरत हैं। डॉ.आशा की शिक्षा-एमबीबीएस,डीजीओ सहित डी फैमिली मेडिसिन एवं एफआईपीएस है। सम्प्रति से आप स्त्री रोग विशेषज्ञ होकर जमशेदपुर के अस्पताल में कार्यरत हैं। चिकित्सकीय पेशे के जरिए सामाजिक सेवा तो लेखनी द्वारा साहित्यिक सेवा में सक्रिय हैं। आप हिंदी,अंग्रेजी व भोजपुरी में भी काव्य,लघुकथा,स्वास्थ्य संबंधी लेख,संस्मरण लिखती हैं तो कथक नृत्य के अलावा संगीत में भी रुचि है। हिंदी,भोजपुरी और अंग्रेजी भाषा की अनुभवी डॉ.गुप्ता का काव्य संकलन-‘आशा की किरण’ और ‘आशा का आकाश’ प्रकाशित हो चुका है। ऐसे ही विभिन्न काव्य संकलनों और राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में भी लेख-कविताओं का लगातार प्रकाशन हुआ है। आप भारत-अमेरिका में कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्बद्ध होकर पदाधिकारी तथा कई चिकित्सा संस्थानों की व्यावसायिक सदस्य भी हैं। ब्लॉग पर भी अपने भाव व्यक्त करने वाली श्रेया को प्रथम अप्रवासी सम्मलेन(मॉरीशस)में मॉरीशस के प्रधानमंत्री द्वारा सम्मान,भाषाई सौहार्द सम्मान (बर्मिंघम),साहित्य गौरव व हिंदी गौरव सम्मान(न्यूयार्क) सहित विद्योत्मा सम्मान(अ.भा. कवियित्री सम्मेलन)तथा ‘कविरत्न’ उपाधि (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ) प्रमुख रुप से प्राप्त हैं। मॉरीशस ब्रॉड कॉरपोरेशन द्वारा आपकी रचना का प्रसारण किया गया है। विभिन्न मंचों पर काव्य पाठ में भी आप सक्रिय हैं। लेखन के उद्देश्य पर आपका मानना है कि-मातृभाषा हिंदी हृदय में वास करती है,इसलिए लोगों से जुड़ने-समझने के लिए हिंदी उत्तम माध्यम है। बालपन से ही प्रसिद्ध कवि-कवियित्रियों- साहित्यकारों को देखने-सुनने का सौभाग्य मिला तो समझा कि शब्दों में बहुत ही शक्ति होती है। अपनी भावनाओं व सोच को शब्दों में पिरोकर आत्मिक सुख तो पाना है ही,पर हमारी मातृभाषा व संस्कृति से विदेशी भी आकर्षित होते हैं,इसलिए मातृभाषा की गरिमा देश-विदेश में सुगंध फैलाए,यह कामना भी है

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