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बुरा न मानो होली है…

गोवर्धन दास बिन्नाणी ‘राजा बाबू’
बीकानेर(राजस्थान)
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फागुन संग-जीवन रंग (होली) स्पर्धा विशेष…

सतुयग से कलयुग यानि आज तक वसंत ऋतु में सभी सनातन धर्मावलम्बी,बच्चे-बूढ़े,सब संकोच और रूढ़ियाँ भूलकर ढोलक- झाँझ-मंजीरों की धुन के साथ नृत्य-संगीत व रंगों में डूब जो त्योहार पूरे उमंग,जोश व उल्लास के साथ मनाते हैं,उसी महत्वपूर्ण भारतीय त्योहार का नाम है होली। वैसे तो सर्दियों के अंत और वसंत के आगमन का संकेत देने वाला यह भारतीय और नेपाली लोगों का त्यौहार माना जाता रहा है,लेकिन इस त्यौहार की विशेषता के चलते यह आज विश्व के हर कोने में प्रसिद्धी पा चुका है,यानि विश्व का प्रायः प्रायः हर बाशिंदा इस त्यौहार से परिचित हो गया है।
इस त्यौहार को ‘होलिका’,’होलाका’,’फगुआ’, ‘फाल्गुनी’,’धुलेंडी’,’दोल’,’वसंतोत्सव’ व ‘रंगपंचमी’ के नाम से भी जाना जाता है। रंगों से खेलने वाला यह उत्सव फाल्गुन पूर्णिमा को होलिका दहन के पश्चात अगले दिन से यानि चैत्र मास की कृष्ण प्रतिपदा से लेकर पंचमी तक सभी लोग उत्साह में भरकर खेलते हैं,जिसके कारण इसे रंगपंचमी भी कहा जाने लगा,लेकिन आज इस आर्थिक युग में खासकर बड़े शहरों में यह पर्व पारम्परिक रूप से २ दिन ही मनाया जाता है।
बच्चे पानी की बंदूकों और पानी से भरे गुब्बारों का उपयोग एक-दूसरे पर छोड़ने और उन्हें रंगने के लिए करते हैं,जबकि बड़े लोग एक दूसरे पर रंग, अबीर-गुलाल इत्यादि फेंकते हैं। आजकल रासायनिक रंगों का उपयोग होने लगा है,जिसके कारण होली में बीमारियां होने लगी हैं।इसलिए गुलाल,अबीर,चंदन और टेसू (पलाश) के फूलों के रंगों से पारम्परिक,प्राकृतिक-वैदिक होली खेलने की परम्परा को बढ़ावा देना चाहिए। कारण यह कि,प्राकृतिक रंगों के प्रयोग से त्वचा को कोई नुकसान नहीं होता है,व शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है,साथ ही पानी की बचत होती है जो आज के समय की आवश्यकता है।
इस त्यौहार की खासियत यह है कि,यह त्यौहार बिना किसी पक्षपात के साथ,दोस्त या अनजान, धनी या निर्धन,पुरुष या स्त्री, बच्चे या बुजुर्ग यानि सभी के साथ खेला जाता है। यानि सारा समाज होली के रंग में रंगकर एक-सा बन जाता है। कोई रंग लगाने पर चिढ़े नहीं,इसलिए ‘बुरा न मानो होली है’ वाक्य होली पर खूब प्रयोग किया जाता है जो माहौल को खुशनुमा बनाए रखने में काफी सहायक होता है।
साधारणतया इस दिन अनेक जगहों पर झुण्ड में सभी स्थान पर ढोल-नगाड़े और वाद्य यंत्र बजाते, होली के गीत गाते,नाचते हुए घूमते हैं,हँसते हैं, हँसाते हैं,गपशप मारते हैं। इस तरह राग और रंग का संगम होता है। प्रायः देखा गया है कि होली के दिन लोग पुरानी कटुता को भूल कर गले मिलते हैं और फिर से दोस्त बन जाते हैं।
होली से जुड़ा यह रोचक तथ्य,जो इतिहास के पन्नों में विशेष स्थान बना चुका है-सतयुग में विष्णु भक्त प्रह्लाद हिरण्यकश्यप नाम के दानव,जो स्वयं को ही ईश्वर मानने लगा था,का पुत्र हुआ करता था। पुत्र की विष्णु भक्ति के कारण दानव हिरण्यकश्यप ने उसे मारने के लिए कई प्रयास किए,लेकिन हर बार वह विफल रहा। दानव की होलिका नाम की बहन के पास एक ऐसी चुनरी थी जिसे ओढ़ कर वह आग में बैठ भी जाए तो आग उसे जला नहीं सकती थी,इसलिए वह प्रह्लाद को लेकर आग में बैठ गई,परन्तु प्रह्लाद की विष्णुभक्ति की वजह से होलिका अग्नि में जलकर खाक हो गई और प्रह्लाद सकुशल धधकती अग्नि से बाहर आ गया। यह घटना फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि को हुई थी,इसलिए ही विष्णु भक्त प्रह्लाद की याद में यानि बुराई पर अच्छाई की जीत दर्शाता होलिका दहन प्रारम्भ हुआ और दूसरे दिन रंगों के साथ बड़ी धूमधाम से पूरे भारत में रंगों का त्यौहार होली मनाया जाने लगा।
स्पष्ट होता है कि,धार्मिक मान्यता के अलावा भी होली का पौराणिक एवं ऐतिहासिक महत्व है। बुराई पर अच्छाई की जीत का यह पर्व समाज में उल्लास,भाई-चारे व प्रेम का संदेश फैलाता है,एवं होली सामूहिक व व्यक्तिगत दोनों तरह से मनाया जाने वाला ऐसा विशिष्ट पर्व है,जो धार्मिक, सांस्कृतिक व सामाजिक विशिष्टता रखता है। इसलिए ही उपभोक्ता खरीद और आर्थिक गतिविधियों के संदर्भ में भी होली का त्यौहार महत्वपूर्ण माना जाता है।
भारत में ब्रज,मथुरा,वृन्दावन और बरसाने की लोकप्रिय लट्ठमार होली व श्रीनाथजी, काशी आदि की होली पूरी दुनिया में सबसे ज्‍यादा प्रसिद्ध है। इसलिए ही इस त्यौहार पर अनेक विदेशी भारत भ्रमण पर आते ही नहीं, बल्कि भागीदारी भी करते हैं। यह स्पष्ट है कि उपरोक्त महत्वपूर्ण विशिष्टताओं के चलते ही होली एक राष्ट्रीय,सामाजिक और आध्यात्मिक पर्व है,जो सभी समुदायों द्वारा पूरे हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है ।

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