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`प्रेम दिवस`:संबंधों में प्रेम की मिठास घोलिए

ललित गर्ग
दिल्ली

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”आंधी से भी भयानक होती है रक्त की वह हलचल,जिसे मनुष्य ने `प्रेम` की संज्ञा दी है।“ रांगेय राघव की यह प्रेम एवं प्रणय से जुड़ी अभिव्यक्ति आज के युवा प्रेमियों पर सही साबित होती हैl युवा दिलों पर उमड़ती इसी आंधी को अभिव्यक्त होने का अवसर मिलता है,`वैलेंटाइन-डे` यानी प्रेम एवं प्यार दिवस पर। यह रोमांटिक प्रेम का त्योहार है। वैलेंटाइन दिवस या संत वैलेंटाइन दिवस जिसे अनेक लोगों द्वारा दुनियाभर में मनाया जाता है,अंग्रेजी बोलने वाले देशों में एक पारंपरिक दिवस है,जिसमें विवाहित प्रेमी एक-दूसरे के प्रति अपने प्रेम का इजहार वैलेंटाइन कार्ड भेजकर,फूल देकर या उपहार आदि देकर करते हैं।
भारत में भी अब वैलेंटाइन-डे बड़े स्तर पर मनाया जाने लगा है। वसंत के प्रेम एवं प्रणय मौसम में १४ फरवरी को मनाया जाने वाला वेलेंटाइन-डे मानवीय संवेदना की सबसे खूबसूरत:अभिव्यक्ति का वह अवसर है,जिसमें प्रेम एक उत्सव की शक्ल में प्रस्तुत होता है। यह वह पर्व है जिसमें सभी प्रेम का संदेश बाँटते हैं। न केवल मानवीय स्तर पर,बल्कि प्रकृति के स्तर पर भी प्रेम बरसता है। यह वह मौसम है जब प्रकृति भी नई साज-सज्जा व श्रंगार के साथ मस्ती व खुशी में झूमती नजर आती है। ऐसे में प्रेम से भरे दिल मचल न उठे,तो फिर वसंत की सार्थकता क्या ?
असल में भारतीय संस्कृति और परम्परा में वेलेंटाइन-डे आयातित पर्व है। पश्चिमी संस्कृति से जुड़ा यह पर्व आज भारतीय जीवन-शैली एवं संस्कृति का अभिन्न हिस्सा बनता जा रहा है। वेलेंटाइन-डे से जुड़ा है संत वेलेंटाइन डे का नाम,जो रोम में पादरी थे। संत वैलेंटाइन डे ने प्रेमियों के लिए संघर्ष करते हुए अपने सम्राट के आदेशों का उल्लंघन किया। इस उल्लंघन के लिए सम्राट ने क्रोधित होकर संत को मौत की सजा सुनाई। वह दिन था १४ फरवरी। तब से इस दिन को वेलेंटाइन-डे के रूप में मनाया जाता है। इस दिन के साथ और भी किंवदंतियाँ जुड़ी हुई हैं।
रोमन सभ्यता से निकले प्रेम की इस महक से धीरे-धीरे सारी दुनिया के युवा प्रेमी जुड़ते चले गए। आधुनिक संदर्भ में वैलेंटाइन-डे अपने प्रेम के इजहार एवं दिल में मचलते प्रेम के सागर को अभिव्यक्ति का एक खूबसूरत पर्व बन गया है। मन में लंबे समय से हिलोरे लेते प्रेम को व्यक्त करने का यह एक खास अवसर है। कुछ अपनी कहना,कुछ उनकी सुनना,कुछ गिले-शिकवे,नोक-झोंक,फूल,गुलदस्ता,कार्ड्स,चाकलेट,घूमना-फिरना,मस्ती,ख्वाब यही सब इस दिन प्रेम के पर्याय बन गए हैं।
भारत में पिछले दो दशक में ही वैलेंटाइन डे को मनाने की शुरुआत हुई है। धीरे-धीरे यह पर्व हमारी संस्कृति के साथ गहराई से जुड़ता जा रहा है,और इस दिन के नाम से युवाओं के दिलों की धड़कनें बेकाबू हो जाती हैं। जब से बाजारवाद की आंधी चली है वेलेंटाइन डे को एक सशक्त व्यावसायिक माध्यम के रूप में भुनाने के लिए बड़ी-बड़ी कम्पनी उतावली रहती हैं। असल में इन्हीं ने इसे देश में बढ़-चढ़कर मान्यता दिलवाई है।
महात्मा गांधी ने लिखा है-”प्रेम कभी दावा नहीं करता,वह तो हमेशा देता है। प्रेम हमेशा कष्ट सहता है,न कभी झुंझलाता है,न बदला लेता है।“ वास्तव में अगर हम किसी से प्रेम करते हैं,तो उसे स्वीकार करने या प्रदर्शन कर इजहार करने में शर्म व हिचकिचाहट कैसी। प्रेम सबको रास नहीं आता है। इसमें कुछ आबाद होते हैं,तो कुछ बरबाद भी। आजकल बरबाद होने वाले व दूसरों को बरबाद करने वाले प्रेमियों की संख्या बढ़ रही है,लेकिन प्रेम शरीर से नहीं आत्मा से जुड़ी एक संवेदना है,जिसमें यदि कोई किसी को आबाद या बरबाद करता है तो वह प्रेम ही कैसा है ? न यह प्रदर्शन की चीज है,और न ही यह कोई खिलौना है,जिसे जो चाहे,जब चाहे खरीद ले,खेल ले और तोड़ कर फेंक दे। प्रेम एक पवित्र भावना है,इसके साथ खिलवाड़ नहीं होना चाहिए।
प्रख्यात कहानीकार मुंशी प्रेमचंद ने लिखा है-”प्रेम जैसी निर्मल वस्तु क्या भय से बांधकर रखी जा सकती है ? वह तो पूरा विश्वास चाहती है,पूरी स्वाधीनता चाहती है,पूरी जिम्मेदारी चाहती है। उसके पल्लवित होने की शक्ति उसके अंदर है। उसे प्रकाश और क्षेत्र मिलना चाहिए। वह कोई दीवार नहीं है,जिस पर ऊपर से ईंटें रखी जाती हैंl उसमें तो प्राण है,फैलने की असीम शक्ति है। सचमुच प्रेम जीवन को नए अर्थ प्रदान करता है। मेरी दृष्टि में यह कहना गलत होगा कि सच्चे प्रेमियों का युग खतम हो गया है। आज भी शीरी-फरहाद व लैला-मजनूँ जैसे प्रेमी युगल मौजूद हैं। एक-दूसरे को पूरी तरह समर्पित,वर्षों तक एक-दूसरे का इंतजार करते,एक-दूसरे के लिए जान न्यौछावर करने वाले एवं प्रेम को गंभीरता-गहराई से जीने वाले प्रेमी युगल हमारे आसपास मौजूद हैं। हाँ,उपभोक्ता संस्कृति के चलते एक नया वर्ग जरूर उभरकर आया है,जिसमें उच्चस्तरीय जीवन जीने की आकांक्षाएँ इतनी प्रबल है कि उनकी संवेदनाएँ शुष्क हो गई हैं। इस वर्ग के युवाओं की जरूरतें व अपेक्षाएँ इतनी बढ़ गई हैं कि वे प्रेम भी करते हैं तो दूसरों का बाहरी सौंदर्य,आर्थिक वैभव व रहन-सहन का स्तर देखकर। किसी एक लड़के या लड़की की दोस्ती उन्हें संतुष्ट नहीं कर पाती है। वे कई लड़के-लड़कियों पर अपना प्रेम आजमाते हैं। अपनी अपेक्षाओं की कसौटी पर उन्हें कसकर देखते हैं। ऐसे लोगों ने ही वेलेंटाइन-डे को एक विडंबना बना दिया है।
प्रेम एक सुखद अहसास,गुदगुदा देने वाली अनुभूति है। इस भीड़ भरी दुनिया में किसी एक के बारे में सोचना,हर गम उसके साथ साझा करना,सोते-जागते सपनों में उसे अपने करीब महसूस करना ही प्रेम है। पूरे बदन में रोमांच पैदा कर देने वाला शब्द है प्रेम। असल में जीवन को खूबसूरत एवं सार्थक बनाने में प्रेम की अहम भूमिका होती है।
जयशंकर प्रसाद के शब्दों में-”प्रेम में स्मृति का ही सुख है। एक टीस उठती है,वही तो प्रेम का प्राण है।“ प्रेम का यही दर्द है,प्रेम तो मन की कोमल भावना है,जो हर इंसान के मन में समाई रहती है। चाहे बाहरी रूप में इंसान का अपने प्रेमी से नाता रहे या न रहे। भारतीय समाज में ऐसे अनेक उदाहरण हमें देखने को मिलते हैं,जहाँ माता-पिता की इच्छा की खातिर या पारिवारिक संस्कारों एवं दबावों के चलते अनेक युवा अपने-अपने प्रेम का बलिदान कर विरह को खुशी-खुशी स्वीकार कर लेते हैं। जिंदगी का नाम ही संघर्ष है। इनका सामना करने वाले और इनसे पार पाने वाले जिंदगी को जीते हैं। गोपियों की विरह वेदना प्रेम की अतृप्ति की चिरवेदना है,और प्रेम को जाज्वल्यमान रखने के लिए यह श्रेयस्कर भी है। गोपियों की विरह वेदना से ही श्रीकृष्ण जान पाए कि उन्हें गोपियाँ कितना प्रेम करती हैं।
`प्रणय दिवस` यानि `वैलेंटाइन-डे` का यही संदेश है कि प्रेम के धागे को ढीला मत होने दीजिए। प्रेम को मानवीय संबंधों का एक सशक्त आधार बनाइए, आपसी संबंधों में प्रेम की मिठास घोलिए। आज सच्चे और पवित्र रिश्तों के अभाव में जीवन बोझिल और जटिल बनता जा रहा है,ऐसे दौर में प्रेम में भीगे रिश्तों को बनाइए। जो रिश्ते बने हुए हैं,उन्हें संभालकर रखिए और अधिक प्रगाढ़ बनाने का प्रयास कीजिए। सार्थक जीवन जीने के लिए प्रेम का स्पर्श जरूरी होता है,और इसी से जीवन निखरता भी है।

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