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‘साब’ का मूड

अरुण अर्णव खरे 
भोपाल (मध्यप्रदेश)
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मूड-एक ऐसा शब्द है,जिससे हम सभी का वास्ता एक बार,दो बार नहीं,अपितु अनेक बार पड़ा है और इसके अनुभव भी कभी सुखद,कभी दुखद तो कभी कष्टप्रद हुए होंगेl यदि आप अफसर हैं,या रहे हैं तो यह बात कभी न कभी,किसी न किसी माध्यम से आपके कानों तक जरूर पहुँची होगी,जब आपके मातहतों ने या आपसे काम करवाने आए लोगों ने आपके कमरे (सॉरी कक्ष) के बाहर स्टूल पर उनींदे से बैठे उस शख्स से यह पूछा होगा कि-“साब का मूड कैसा है ?” यह ऐसा वाक्यांश है,जिससे व्यक्ति को अपने साहब होने के महत्व का पता चलता रहता है और ‘साब’ बने रहने के लिए ऊर्जा की सतत आपूर्ति होती रहती हैl

ऑफिस के कर्मचारियों को ‘साब’ के मूड के बारे में जानकारी किसी से लेनी नहीं पड़ती,वे साहब के हाव-भाव से ही समझ जाते हैं कि,आज ‘साब’ का मूड कैसा हैl यदि ‘साब’ ने ऑफिस में प्रवेश करते समय चपरासी की `नमस्ते` का उत्तर दे दिया तो कर्मचारी स्वमेव समझ जाते हैं कि,’साब’ अच्छे मूड में हैं, और उनसे उलझी हुई फाइलों में आसानी से दस्तखत कराए जा सकते हैंl जिस दिन ‘साब’ तेजी से अपने कक्ष में प्रवेश करते ही महिला स्टेनो को डिक्टेशन के लिए बुला लेते हैं,और कमरे के बाहर का लाल बल्ब जल उठता है,तो सबको पता चल जाता है कि आज मेमसाब ने ‘साब’ का मूड ऑफ कर दिया हैl इसकी पुष्टि होने में भी ज्यादा देर नहीं लगती,जब एक-डेढ़ घंटे की डिक्टेशन के बाद भी स्टेनो को कोई पत्र या ड्राफ्ट टाइप करते किसी ने नहीं देखा होताl इस दिन कर्मचारी ‘साब’ से सुरक्षित दूरी बना कर रखने में अपना हित देखते हैंl

कर्मचारियों को ‘साब’ का मूड भाँप कर चलना नौकरी के पहले ही दिन वरिष्ठ कर्मचारी सिखा देते हैंl उसे बताया जाता है यदि ऑफिस में अपनी अहमियत बना कर रखनी है,तो ‘बॉस इज आलवेज राइट’ के अलिखित लेकिन प्रशासनिक हलकों में आई.एस.ओ. मापदण्ड सरीखे प्रमाणित फार्मूले का पालन जरूरी हैl ‘साब’ यदि गुस्से में कभी गधा,बेवकूफ भी बोल दें तो ‘यस सर’ कहकर मान लेना चाहिए,जो इतनी सहनशक्ति का परिचय दे पाते हैं वे शीघ्र ही ‘साब’ की गुड-बुक में शामिल हो जाते हैं और गोपनीय किसिम की फाइलों तक उनकी पहुँच होने लगती हैl धीरे-धीरे ‘साब’ के गोपनीय कार्यों के राजदार भी हो जाते हैंl

कर्मचारियों को ‘साब’ के मूड के अनुसार काम करने की आदत डालनी पड़ती हैl उनके पास ‘आज काम का मूड नहीं है’,कहने की सुविधा नहीं होतीl यह सुविधा केवल ‘साब’ को प्राप्त होती हैl वह जब मन हो,वक्त बेवक्त,सुबह-शाम,छुट्टीवाले दिन को भी कर्मचारी को फाइल लेकर अपने बंगले पर बुला कर काम पर लगा सकता हैl हर अफसर को काम करने वाले लोग पसंद होते हैं,लेकिन जो काम करने का केवल दिखावा करते हैं,वे और भी ज्यादा पसंद होते हैंl हर कार्यालय में ऐसे एक-दो कामकाजी निखट्टू कर्मचारी होते हैं,जो ‘साब’ का मूड ताजा रखने की तमाम भौतिक,रसायनिक और जीव विज्ञानी विधियों से परिचित होते हैंl ऐसे बे-कायदे के लोग अनेक मौकों पर बड़े कायदे के सिद्ध होते हैं,इसलिए ‘साब’ के चहेते बन जाते हैंl

कभी-कभी पूरी सावधानी के बावजूद ‘साब’ का मूड पढ़ने में मौसम अथवा ज्योतिषी की भविष्यवाणी सरीखी गफलत भी हो जाती हैl वैसे भी अफसर के मूड का कोई भरोसा नहीं होताl अफसर होने के नाते उसे छोटी-छोटी बात पर उखड़ने की छूट होती हैl जब उसे लगने लगता है कि,कर्मचारी उसकी शराफत का फायदा उठाने लगे हैं,तो वह किसी को लक्ष्य बनाकर किसी पर भी उखड़ जाता हैl उखड़ते समय उसे इतना ध्यान तो रहता ही है कि,जिस पर वह उखड़ रहा है वह कहीं कर्मचारी नेता तो नहीं हैl

बाहरी तौर पर कर्मचारी नेता और ‘साब’ की कभी पटरी नहीं बैठती,लेकिन ‘वन टू वन’ होने का मौका मिलते ही नेता जी पालतू बिल्ली की तरह पेश आते हैं,और ‘साब’ सर्वशक्तिमान दाता की तरहl `वन टू वन` बैठक समाप्त होने पर दोनों ही अपने-अपने कारणों से खुश नजर आते हैंl एक साब का मूड ठिकाने पर लाने का दावा करता है,और दूसरा नेता जी का मूड ठिकाने लगाने काl किसने किसको ठगा,ये बाहर वाले समझ ही नहीं पाते,जबकि दरअसल ठगे वही जाते हैंl

परिचय:अरुण अर्णव खरे का जन्म २४ मई १९५६ को अजयगढ़,पन्ना (म.प्र.) में हुआ है। होशंगाबाद रोड (म.प्र.), भोपाल में आपका घरौंदा है। आपने भोपाल विश्वविद्यालय से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक की शिक्षा प्राप्त की है। आप लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग में मुख्य अभियंता पद से सेवानिवृत हैं। कहानी और व्यंग्य लेखन के साथ कविता में भी रुचि है। कहानियों और व्यंग्य आलेखों का नियमित रूप से देश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं सहित विभिन्न वेब पत्रिकाओं में भी प्रकाशन जारी है। श्री खरे का १ व्यंग्य संग्रह और १ कहानी संग्रह सहित २ काव्य कृतियाँ-“मेरा चाँद और गुनगुनी धूप” तथा “रात अभी स्याह नहीं” प्रकाशित है। कुछ सांझा संकलनों में भी कहानियों तथा व्यंग्य आलेखों का प्रकाशन हुआ है। कहानी संग्रह-“भास्कर राव इंजीनियर” व व्यंग्य संग्रह-“हैश,टैग और मैं” प्रकाशित है। कहानी स्पर्धा में आपकी कहानी ‘मकान’ पुरस्कृत हो चुकी है। गुफ़्तगू सम्मान सहित दस-बारह सम्मान आपके खाते में हैं। इसके अलावा खेलों पर भी ६ पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। भारतीय खेलों पर एक वेबसाइट का संपादन आपके दायित्व में है। आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर भी वार्ताओं का प्रसारण हुआ है। आप मध्यप्रदेश में कुछ प्रमुख पत्रिकाओं से भी जुड़े हुए हैं। अमेरिका में भी काव्यपाठ कर चुके हैं। 

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