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नहीं दु:ख की घड़ी रहती

हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

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घर-परिवार स्पर्धा विशेष……

रचनाशिल्प:१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
मुहब्बत से सजा रहता जो घर-परिवार जीवन का,
उसी में हर खुशी रहती।
नहीं दु:ख की घड़ी रहती।

पिता,माता,बहन,भाई,सभी रहते हैं मिल-जुल के,
यहीं तो हर खुशी रहती।
नहीं दु:ख की घड़ी रहती,
मुहब्बत से सजा रहता…॥

दरो-दीवार में कितनी मुहब्बत की महक रहती,
बड़े-छोटे सभी रहते,खुशी की हर झलक रहती।
मेरा,तेरा भी होता पर सभी की एक ही बस्ती,
उसी में हर खुशी रहती।
नहीं दु:ख की घड़ी रहती।
मुहब्बत से सजा रहता…

सभी कहते,सभी सुनते,कभी रूठें,कभी खुश हों,
किसी की मांग को पूरी करे कोई जो जिससे हो।
कभी अन-बन भी होती पर बनी रहती मुहब्बत ही,
यहीं तो हर खुशी रहती।
नहीं दु:ख की घड़ी रहती।
मुहब्बत से सजा रहता…

नभें दस्तूर रिश्तों के बने वो आशियाँ सबका,
रहें परिवार में खुशियां,सहें दुख एक-दूजे का।
भला फिर और क्या लेना सजाए स्वर्ग सुख धरती,
कहें सब हर खुशी रहती।
नहीं दु:ख की घड़ी रहती।
मुहब्बत से सजा रहता…॥

परिचय-हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।

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