डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)
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राजनीति प्रतिकूलता,देशविमुख फरमान।
चाहे जितना यतन कर,सफल न हो अरमान॥
देश से बढ़ कर कुछ नहीं,समझो रे गद्दार।
छोड़ो दंगा गुंडई,बनो वतन खु़द्दार॥
लोकतंत्र मतलब नहीं,तोड़ोगे तुम देश।
गाओगे नापाक को,नहीं बचोगे शेष॥
कोसो तुम सरकार को,ये तेरा अधिकार।
पर तोड़ो मत देश को,वरना हो धिक्कार॥
आज़ादी अभिव्यक्ति का,अर्थ न देश विरोध।
ध्वंस करें संपद वतन,रेल सड़क अवरोध॥
आज़ादी किससे तुम्हें,भारत या सरकार।
लहराते नापाक ध्वज,बन दहशत सरदार॥
कलमकार बन सारथी,देश विरोधी राग।
थोथी गायन मंच पर,पैसों का सहभाग॥
सारे तमगे लूटकर,चापलूस कविकार।
देशविरोधी लेखनी,फुहर हास फनकार॥
विषयी बस तुष्टीकरण,शायर ग़ज़ली यार।
उर्दू की शागिर्दगी,हिन्दी बंटाधार॥
अंधी चौथी आँख अब,बिकी पाक और चीन।
शह देती गद्दार को,लोकतंत्र गमगीन॥
निर्माणक शिक्षक यहाँ,भड़काते नित छात्र।
देश विरोधी प्रेरणा,बनते छात्र कुपात्र॥
अभिनेता नेता सभी,देश विमुख बस स्वार्थ।
बिन जम़ीर इन्सानियत,सब सत्ता लाभार्थ॥
परवाने स्वाधीनता,बलिदानी इस देश।
देख वतन गद्दार को,मर्माहत उपवेश॥
परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥