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भगवान चित्रगुप्त चालीसा

अमल श्रीवास्तव 
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)

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सदगुरु के पावन चरण,
सादर उर में धारि।
सुमिरहुं गणपति,सरस्वती,
श्री,गौरा,त्रिपुरारि॥

अखिल विश्व के न्याय विद,
चित्रगुप्त भगवान।
प्रणवहुं पावन चरण रज,
विधि,हरि,हर सम जान॥

जय,जय चित्रगुप्त भगवाना।
नहि तव आदि,मध्य,अवसाना॥

परम ब्रम्ह चह सृष्टि नवीना।
विगत प्रलय जग शून्य अधीना॥

तब निज चाह भयउ त्रय रूपा।
ब्रह्मा,विष्णु जु शम्भु अनूपा॥

जग कारण प्रभु दीनदयाला।
तिन्ह सन्मुख प्रगटेउ तेहि काला॥

दिये विधिहि निर्देश बुझाई।
सृष्टि रचहु सुन्दर सुखदाई॥

रचेउ विधाता रुचिर जहाना।
जड़,चेतन,जल,थल,नभ,नाना॥

करि रचना विधि हृदय विचारा।
काल नियामक जीवन हारा॥

जीव करम को लेखन हारा।
करै न्याय ताके अनुसार॥

अस चित चिंतन कियो विधाता।
चित्रगुप्त प्रगटे निज गाता॥

चैत्र कृष्ण की तिथि द्वितीया।
परम पुनीत दिवस रमणीया॥

चित से प्रगटे काया पाए।
‘चित्रगुप्त’,’कायस्थ’ कहाए॥

सृजन,पाल,संहार शक्ति जी।
लिए प्रगट भे चित्रगुप्त जी॥

चतुरानन तब कहेउ बुझाई।
होउ देव तुम मोर सहाई॥

जीव जे तन धारहि जग जाता।
कर्म लेख न्यावहु तेहि ताता॥

ब्रह्म सुमिर कीजै निज काजा।
लेहु साथ में शनि,यमराजा॥

अस कहि दीनेहु कलम दवाता।
कीन्हे शनि,यम संग विधाता॥

जल,थल,नभ बस जीव जहाना।
करहि कर्म निज रुचि विधि नाना॥

चित्रगुप्त लखि कर्म स्वरूपा।
करहि न्याय ताके अनुरूपा॥

इरावती,दक्षिणा सुबामा।
चित्रगुप्त संग ब्याह ललामा॥

तेहि सन जन्मे द्वादश वंसा।
चित्रगुप्त प्रभु कुल अवतंसा॥

श्रीवास्तव,माथुर,अस्थाना।
सक्सेना,कुलश्रेष्ठ,सुजाना॥

गौड़,कर्ण,अंबष्ट,सुहाए।
सूरज ध्वज,भटनागर,भाए॥

बालमीक,और निगम बखाना।
चित्रगुप्त वसंज जग जाना॥

देश,काल,स्थिति अनुसारा।
आगे और वंश विस्तारा॥

नचिकेता ने दर्शन कीन्हा।
ज्ञान,भक्ति,गुण तुमसे लीन्हा

भीष्म पितामह तुमहि रिझाए।
इक्छा मृत्यु वरण वर पाए॥

न्यायाधीश सत्य पथ गामी।
कर्म लेख फल,अन्तर्यामी॥

तुम अनादि ओंकार स्वरूपा।
लोक पाल,दिक पालहि भूपा॥

लंका विजय कियाे जब रामा।
लौटे कातिक वदी सुधामा॥

जन सानंद किए अगवानी।
सौम्येउ चारु अवध रजधानी॥

तिथि जु अमावस कातिक मासा।
दिसि दिसि उमगेउ नगर हुलासा॥

दीप जलाइ विश्व छवि दीन्हे।
नगर गली गृह जगमग कीन्हे

आयसु दीन्ह सबहि मुनि केतू।
राजतिलक प्रभु मंगल हेतू॥

सब देवन को न्योत बुलावहु।
यथा योग्य पाती पठवावहु॥

पाती बंटी,जहां जे पाए।
साज सजाय अवधपुर आए॥

ऋषि,महर्षि,मुनि,देव पधारे।
नर,नृप,किन्नर आए द्वारे॥

दृष्टि फिरी गुरु देवन्ह देखा।
चित्रगुप्त नहि लखहि विशेखा॥

भूले चित्रगुप्त नहि न्योते।
रूठे चित्रगुप्त प्रभु त्योते॥

गलती गुरु वशिष्ठ सब जाना।
निज मन माहि दुसह दुःख माना॥

कोपेउ चित्रगुप्त मन गाता।
तजेउ तेहि क्षण कलम, दवाता॥

जीव,कर्म फल,न्याय गुसाईं।
भयउ अराजक सब जग ठाई॥

जानि मर्म गुरु सबहि जनाई।
चित्रगुप्त कह पूजहु जाई॥

गुरु संकेत सकल भें ठाढे।
सबके नीर विलोचन बाढ़े॥

विनती जबहि करन सब लागे।
चित्रगुप्त निज रोषहि त्यागे॥

भूल सो काहू देहु न खोरी।
क्षमिय नाथ सब गलती मोरी॥

तिथि प्रतिपदा जु कातिक मासा।
कृष्ण पक्ष दिन टरेउ हुलासा॥

यम जु द्वितीया की तिथि आई।
सबे प्रार्थना कीनेहु जाई॥


कीन्ही क्षमा भूल सोइ माना।
प्रमुदित चित्रगुप्त भगवाना॥

सब कुछ ईश मर्म मन जाना।
करन न्याय लागे तजि माना॥

सहज भयउ सब सृष्टि अनूपा।
जग कर काज भयउ सम रूपा॥

तब वशिष्ठ शुभ घड़ी विचारा।
राम चन्द्र कर तिलक संवारा॥

तब से कार्तिक शुक्ल द्वितीया।
चैत्र कृष्ण सम अति रमणीया॥

दोनों तिथिहि करहि जे ध्याना।
चित्रगुप्त उर उपजहि ज्ञाना॥

मसि,सुपात्र,लेखनि की पूजा।
कर धारहि पुनि कर्म न दूजा॥

तापर चित्रगुप्त करि दाया।
कर्म सुधार मार्ग बतलाया॥

जानहु अस प्रभु सहज,सुजाना।
चित्रगुप्त संसार बखाना॥

मन अलि चित्रगुप्त पद कंजा।
तिन्हहि न ब्यापे पातक पुंजा॥

बसे जे चित्रगुप्त पद कूला।
ताकर नसे त्रिविध भव शूला॥

जे मन चित्रगुप्त पद ध्याना।
पाप रहित सो परम सुजाना

चित्रगुप्त चालीसा गाई।
जो पूजन करिहें चित लाई॥

नसिहे ताहि नरक कर त्रासा।
करिहें जाय अमर पुर वासा॥

करिहें जो चालीसा गाना।
चित्रगुप्त नसिहै दुःख नाना॥

जय जय सकल कर्मफल दाता।
जय जय सब जीवन के त्राता॥

धन्य धन्य हे न्याय के स्वामी।
बार-बार तव चरण नमामी॥

जय,जय चित्रगुप्त भगवन्ता।
जय,जय विधि,हरि,हर,मुनि,संता॥

ब्रम्हा,विष्णु,रुद्र,सुर जेते।
सबके भक्तन को फल देते॥

जो जन शरण तुम्हारी आवे।
शुद्ध चित्त,निर्मल मति पावे॥

धूप,दीप,अक्षत,कर लीजे।
पूजन चित्रगुप्त का कीजे॥

आवाहन, वंदन करि भाई।
हल्दी,चंदन,पान,चढ़ाई॥

पूज,अर्च,पुनि स्तुति गाइय।
फल मेवा कर भोग लगाइए॥

कर्म-धर्म सब लेखन हारे।
सुमिरत दोष,दुःख सब छारे॥

पूजन ते प्रभु देत अनंदा।
काटत कोटि नरक कर फंदा॥

सोवत-जागत लेत जे नामा।
ताकर सुधर जात विधि वामा॥

चित्रगुप्त प्रभु को जो ध्यावे।
अमर लोक को सो सुख पावे॥

कर्म,न्याय के जे प्रभु स्वामी।
उर-उर के जे अन्तर्यामी॥

चित्रगुप्त पद प्रीत दृढ़ाई।
शुद्ध चित्त वंदन जो गाई॥

पंचामृत कराय स्नाना।
नाम जापि जे करिहें ध्याना॥

चित्रगुप्त तेहि पर अनुकूला।
करिहहि कृपा,मिटाहहि सूला॥

चित्रगुप्त जय देव हमारे।
हैं हम भगत जु शरण तुम्हारे॥

जो पूजन अस करहि हमेशा।
मेटहि चित्रगुप्त भव क्लेशा॥

जय,जय चित्रगुप्त प्रभु देवा।
पूजा तुम्हरी,तुम्हरी सेवा॥

नाम जापि करि स्तुति गावें।
कीजे कृपा चरण रति पावें॥

सब विधि मेरी अर्चना।
स्वीकारो हे नाथ॥

चित्रगुप्त प्रभु करि कृपा,
पारहु भव निधि पाथ॥

परिचय-प्रख्यात कवि,वक्ता,गायत्री साधक,ज्योतिषी और समाजसेवी `एस्ट्रो अमल` का वास्तविक नाम डॉ. शिव शरण श्रीवास्तव हैL `अमल` इनका उप नाम है,जो साहित्यकार मित्रों ने दिया हैL जन्म म.प्र. के कटनी जिले के ग्राम करेला में हुआ हैL गणित विषय से बी.एस-सी.करने के बाद ३ विषयों (हिंदी,संस्कृत,राजनीति शास्त्र)में एम.ए. किया हैL आपने रामायण विशारद की भी उपाधि गीता प्रेस से प्राप्त की है,तथा दिल्ली से पत्रकारिता एवं आलेख संरचना का प्रशिक्षण भी लिया हैL भारतीय संगीत में भी आपकी रूचि है,तथा प्रयाग संगीत समिति से संगीत में डिप्लोमा प्राप्त किया हैL इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ बैंकर्स मुंबई द्वारा आयोजित परीक्षा `सीएआईआईबी` भी उत्तीर्ण की है। ज्योतिष में पी-एच.डी (स्वर्ण पदक)प्राप्त की हैL शतरंज के अच्छे खिलाड़ी `अमल` विभिन्न कवि सम्मलेनों,गोष्ठियों आदि में भाग लेते रहते हैंL मंच संचालन में महारथी अमल की लेखन विधा-गद्य एवं पद्य हैL देश की नामी पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएँ प्रकाशित होती रही हैंL रचनाओं का प्रसारण आकाशवाणी केन्द्रों से भी हो चुका हैL आप विभिन्न धार्मिक,सामाजिक,साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़े हैंL आप अखिल विश्व गायत्री परिवार के सक्रिय कार्यकर्ता हैं। बचपन से प्रतियोगिताओं में भाग लेकर पुरस्कृत होते रहे हैं,परन्तु महत्वपूर्ण उपलब्धि प्रथम काव्य संकलन ‘अंगारों की चुनौती’ का म.प्र. हिंदी साहित्य सम्मलेन द्वारा प्रकाशन एवं प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री सुन्दरलाल पटवा द्वारा उसका विमोचन एवं छत्तीसगढ़ के प्रथम राज्यपाल दिनेश नंदन सहाय द्वारा सम्मानित किया जाना है। देश की विभिन्न सामाजिक और साहित्यक संस्थाओं द्वारा प्रदत्त आपको सम्मानों की संख्या शतक से भी ज्यादा है। आप बैंक विभिन्न पदों पर काम कर चुके हैं। बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ. अमल वर्तमान में बिलासपुर (छग) में रहकर ज्योतिष,साहित्य एवं अन्य माध्यमों से समाजसेवा कर रहे हैं। लेखन आपका शौक है।

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