दर्द इसी बात का रह गया
गीतेश करंदीकरमुंबई(महाराष्ट्र)*************************** बचपन एक सीमा है,जो एक दिन समाप्त हो जाती हैउस आदमी को मूँछ लाकर,एक नौजवान बना देती हैlपहले जो उसे आँख दिखते,वो अब उससे डरते हैंबस दर्द इसी बात का रह गया,बचपन उसे वापस न मिल पाया…l वो दिन चले गए,जब उसके गाल खींचे जाते थेवो पल चले गए,जब उसे सैर पर ले … Read more