मानव मूल्य कहाँ बच पाए…

ओम अग्रवाल ‘बबुआ’ मुंबई(महाराष्ट्र) ****************************************************************** स्वार्थ परस्ती में बोलो अब, ‘मानव मूल्य कहाँ बच पाए’, मानव तो कहलाते हैं पर,मानवता हम कब रच पाए। नारी के शोषण पर बोलो,क्या आँखें नम होती हैं ? भूखे-नंगे बच्चों पर क्या,अपनी आँखें रोती हैं ? घर के बड़े-बुजुर्गों पर भी,हमको तरस नहीं आता, अग्रज और अनुज का भी … Read more