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मानव मूल्य कहाँ बच पाए…

ओम अग्रवाल ‘बबुआ’
मुंबई(महाराष्ट्र)
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स्वार्थ परस्ती में बोलो अब, ‘मानव मूल्य कहाँ बच पाए’,
मानव तो कहलाते हैं पर,मानवता हम कब रच पाए।

नारी के शोषण पर बोलो,क्या आँखें नम होती हैं ?
भूखे-नंगे बच्चों पर क्या,अपनी आँखें रोती हैं ?

घर के बड़े-बुजुर्गों पर भी,हमको तरस नहीं आता,
अग्रज और अनुज का भी तो,हमको चैन नहीं भाता।

और वतन की खातिर बोलो,हमने क्या बलिदान किया,
किसकी खातिर बोलो हमने, तन-मन-धन कुर्बान किया।

मान प्रतिष्ठा बल वैभव के,हम तो इतने कायल हैं,
मानवता भी कुंठित है फिर,संस्कार भी घायल हैं।

आतंकी परिभाषा को हम,बोलो कब पढ़ पाए हैं,
और वतन के नाम पे बोलो,कितने पुष्प चढ़ाए हैं।

जर जमीन या सोना-चाँदी,कागज के नोट सुहाते हैं,
अधिकार सहित ऊँची कुर्सी के,हमको लोभ लुभाते हैं।

पैसों के चक्कर में बोलो,इतने क्यूँ मजबूर हुए,
गैरों की तो बात छोड़ दो,हम अपनों से दूर हुए।

मन बेचा मन मंथन बेचा,फिर हमने क्या पाया है,
सोचो-समझो मनन करो क्या,सही मार्ग अपनाया है।

बीत गई सो बीत गई अब,पछताने से क्या होगा,
रात अंधेरी शमा बुझी है,परवाने से क्या होगा।

आओ उठें और हम फिर से,दीपक नया जलाएं,
अपना और वतन का वैभव,फिर रौशन कर जाएं॥

परिचय-ओमप्रकाश अग्रवाल का साहित्यिक उपनाम ‘बबुआ’ है।आप लगभग सभी विधाओं (गीत, ग़ज़ल, दोहा, चौपाई, छंद आदि) में लिखते हैं,परन्तु काव्य सृजन के साहित्यिक व्याकरण की न कभी औपचारिक शिक्षा ली,न ही मात्रा विधान आदि का तकनीकी ज्ञान है।आप वर्तमान में मुंबई में स्थाई रूप से सपरिवार निवासरत हैं ,पर बैंगलोर  में भी  निवास है। आप संस्कार,परम्परा और मानवीय मूल्यों के प्रति सजग व आस्थावान तथा देश-धरा से अपने प्राणों से ज्यादा प्यार है। आपका मूल तो राजस्थान का झूंझनू जिला और मारवाड़ी वैश्य है,परन्तु लगभग ७० वर्ष पूर्व परिवार उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में आकर बस गया था। आपका जन्म १ जुलाई को १९६२ में प्रतापगढ़ में और शिक्षा दीक्षा-बी.कॉम.भी वहीं हुई है। आप ४० वर्ष से सतत लिख रहे हैं।काव्य आपका शौक है,पेशा नहीं,इसलिए यदा-कदा ही कवि मित्रों के विशेष अनुरोध पर मंचों पर जाते हैं। लगभग २००० से अधिक रचनाएं आपने लिखी होंगी,जिसमें से लगभग ७०० का शीघ्र ही पाँच खण्डों मे प्रकाशन होगा। स्थानीय स्तर पर आप कई बार सम्मानित और पुरस्कृत होते रहे हैं। आप आजीविका की दृष्टि से बैंगलोर की निजी बड़ी कम्पनी में विपणन प्रबंधक (वरिष्ठ) के पद पर कार्यरत हैं। कर्नाटक राज्य के बैंगलोर निवासी श्री  अग्रवाल की रचनाएं प्रायः पत्र-पत्रिकाओं और काव्य पुस्तकों में  प्रकाशित होती रहती हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-जनचेतना है।  

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