मेरे नाना

प्रज्ञा गौतम ‘वर्तिका’ कोटा(राजस्थान) ********************************************* बहुत याद आते हैं नाना,जिनके सानिध्य-छाँव में बचपन के अनेक वर्ष बीतेl मन की अतल गहराइयों में दबी,पीले और भंगुर पृष्ठों पर उकेरी हुई रंग उड़ी चित्रकथाओं-सी बचपन की स्मृतियाँl एक धुंधली-सी स्मृतिl पांच वर्ष की छोटी-सी बच्ची मैं,नाना की उंगली थामे बाज़ार से गुजर रही हूँl कोई सज्जन रास्ते … Read more

स्त्री

प्रज्ञा गौतम ‘वर्तिका’ कोटा(राजस्थान) ********************************************* स्त्री… स्त्री-गर्भ से प्रस्फुटित वह अंकुर, जो पुष्पित-पल्लवित हो उठता है बिना सींचे भी, गमक उठता है घर-भर पोसती है वह आँचल की छांव तले पीढ़ियों को, बिना जमाए अपनी जड़ें किसी धरती पर। स्त्री… स्नेह की रेशमी डोर, रेशा-रेशा बिखर कर तिरती रहती है, जाने कितने रिश्तों में जाने … Read more