खिड़की खुली रहीं

डाॅ.आशा सिंह सिकरवार अहमदाबाद (गुजरात )  **************************************************************** खिड़की और दरवाजे, झाड़ते-पोंछते पता ही नहीं लगा, कि कब खुल गयीं खिड़कियाँ कब खुल गए दरवाजे, मेरे लिए। जंगलों की तरफ, रात-रात भागती कुम्हारिन कभी पिशाचिन बनती तो कभी बच्चों को, उठा ले जाने वाली डायन अंधेरे में टार्च और लाठी, नंगी आँखें सिर्फ एक औरत की … Read more

सीमाएँ जब टूटती हैं…

डाॅ.आशा सिंह सिकरवार अहमदाबाद (गुजरात )  **************************************************************** सीमाएँ जब टूटती हैं, बनी हुई मूरत को जब हथौड़े से तोड़ा जाता है, सदियों पुरानी मूरत पहले झेलेगी छोटे-छोटे वार, असंख्य प्रहारों के पश्चात एक आखिरी वार जो होगा सबसे ताकतवर, बिखर जाएगी मिट्टी। जब बिखर जाती है कोई बनी हुई मूरत, अब नयी मूरत बनने में … Read more

घूँट

डाॅ.आशा सिंह सिकरवार अहमदाबाद (गुजरात )  **************************************************************** उसने पिए सदियों जितने घूँट अपमान के, समाज के आईने में स्वयं को खो दिया, दु:ख और निराशा के भीतर खोजती रही नये व्यक्ति नयी वस्तु, खुद को जोड़ने के सार्थक प्रयास में निरन्तर टूटती रही भोग हुए अपमान में, वह जो नवीन था वह कितना सहायक था, … Read more

जल ही जीवन है

डाॅ.आशा सिंह सिकरवार अहमदाबाद (गुजरात )  **************************************************************** जल है भारी संकटग्रस्त, व्यर्थ पदार्थ वाहित मल औद्योगिक अपशिष्ट कीटनाशी पदार्थ, उवर्शकों के रासायनिक तत्व पट्रोलियम पदार्थ जिनसे जल जीवन की रक्षा होती है वे ही आज मृत्यु के कारण बन बैठे, देता टाइफायड,पीलिया,हैजा पेचिश,पेट के कीड़े,मलेरिया सब बीमारियों को न्यौता, गोमती का विषाक्त जल हो या … Read more

माँ न होती तब मैं क्या होती!

डाॅ.आशा सिंह सिकरवार अहमदाबाद (गुजरात )  **************************************************************** मातृ दिवस स्पर्धा विशेष………… माँ जितनी बिस्तर पर लेटी है उससे कहीं ज्यादा मेरे भीतर, डर को भाँप रहा है मन अनचाहे दु:ख से काँप रहा है, सोचती हूँ माँ न होती तब मैं क्या होती सशक्त स्वयं नहीं थी पर, मुझे सशक्तिकरण का पूरा पाठ पढ़ाया माँ … Read more

अधीन

डाॅ.आशा सिंह सिकरवार अहमदाबाद (गुजरात )  **************************************************************** अधीन बहुत गहरे, मानदंड पितृसत्तात्मक मान-प्रतिष्ठा के नीचे दबी कुचली किरकिरी-सी, नहीं रत्तीभर जगह समा जाए वह पीठ वजन भर, खड्डे में उड़ेल भर लौटी प्राण-प्रतिष्ठा जगत में उपहास वह रोई, खुद ही देखी पराधीनता के भंवर में उठती धीरे-धीरे चिंगारी, किस दिशा अधीर अजीब छटपटाहट, पीड़ा से … Read more

बेटियाँ

डाॅ.आशा सिंह सिकरवार अहमदाबाद (गुजरात )  **************************************************************** एक मजदूर की बेटी, जब स्कूल जाने की इच्छा जताती है उस रात पिता को नींद नहीं आती है, पहुंचाते हुए बेटी को स्कूल दिखाई पड़तीं हैं उबड़-खाबड़ रास्तों से, रफ्तार से गुज़रती बैने,मोटरसाइकिलें कि हिल जाता है पिता अपनी जगह से, और एक अमीर की बेटी बगैर … Read more

पृथ्वी के मुख पर कालिख़

डाॅ.आशा सिंह सिकरवार अहमदाबाद (गुजरात )  **************************************************************** विश्व धरा दिवस स्पर्धा विशेष……… जब मैं जन्मी, पूरी की पूरी पृथ्वी मेरे इर्द-गिर्द थी, पहाडों से फूटते झरने सरसराते पेड़ों से लिपटी लताएँ, खिलखिलाते अनगिनत फूल घनघोर बरसती हुई बारिश और हवा ने, मेरी नन्हीं-नन्हीं हथेलियों को चूम लियाl बचपन की हर सुबह, मैदानों में होती थी … Read more

यंत्रणा

डाॅ.आशा सिंह सिकरवार अहमदाबाद (गुजरात )  **************************************************************** उसका दमन,तिरस्कार उसकी यंत्रणा उतनी ही प्राचीन है, जितना कि पारिवारिक जीवन का इतिहास असंगत और मन्द प्रक्रिया में, उसने हिंसा को हिंसा की दृष्टि से देखा ही नहीं कभी, वह स्वयं भी हिंसा से इंकार करती है धार्मिक मूल्य और सामाजिक दृष्टि का बोझ, उसके कंधे पर … Read more